Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : महा : र४९४
(सर्व जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
प्रश्न:– अनादिकाळथी आत्मा छे ने तेनामां भगवान जेटली शक्ति छे;–तो ते ख्यालमां
केम नथी आवतो?
(पंकज जैन नं. ३०६)
उत्तर:– भाईश्री, जो जरापण ख्याल न आवतुं होत तो उपरनी वात तमे क््यांथी लखी?
’ आत्मा छे–भगवान जेवो छे’ एवुं ज्यारे तमे लख्युं त्यारे ते प्रकारनो कंईक ख्याल तो
आव्यो–त्यारे लख्युं ने? जेम आटलो ख्याल आव्यो, तेम ज्ञानीना उपदेशअनुसार जो अंतरमां
वधारे प्रयत्न करीए तो वधारे ख्याल पण जरूर आवे; अने तेनो स्पष्ट अनुभव पण थाय. –
पण जे साचा भावथी अभ्यास करे तेने थाय.
प्रश्न:– कई क्रियामां आत्मा छे? अने केवळज्ञान कळा केम खीले? (नं. ८९० जसदण)
उत्तर:– आत्मा पोतानी ज्ञानक्रियामां छे; केमके कर्ता अने तेनी क्रिया (परिणति) जुदा
होता नथी; एटले जडनी क्रियामां आत्मा नथी. अने भेदविज्ञानरूप सम्यक् विद्यावडे
केवळज्ञानकळा खीले छे.
प्रश्न:– शरीर सजीव छे के निर्जीव? (नं. २६१ सोनगढ)
उत्तर:– शरीर निर्जीव छे. कोईवार शरीरना संयोगमां जीव रहेलो छे ते बताववा तेने
‘सजीव’ कह्युं होय तो त्यां पण शरीरथी जुदो जीव छे, ने शरीर पोते तो निर्जीव (अजीव) ज
छे, तेनामां जीवत्व (चेतनत्व) नथी–एम समजवुं.
प्रश्न:– शरीर हाली–चाली तो शके छे–छतां ते निर्जीव केम?
उत्तर:– भाईश्री, हालवा–चालवानी शक्ति शुं जीवमां ज छे? ने अजीव पुद्गलमां नथी?
तमने खबर कदाच नहि होय के–हालवुं–चालवुं ए जीवनो खरो स्वभाव नथी पण ए तो
पुद्गलनो स्वभाव छे; जीवनो स्वभाव तो स्थिर रहेवानो छे–जुओ, सिद्धभगवंतो तो सदाय
स्थिर ज रहे छे, –तेओ हालता–चालता नथी.
हाले चाले ते जीव, ने स्थिर रहे ते अजीव–एवा कांई जीव–अजीवनां लक्षण नथी. जाणे
ते जीव; ने न जाणे ते अजीव; जगतमां तो अजीव पदार्थो (ट्रेईनना लोढानां पेडा, लाकडा,
धरतीनो ध्रूजारो, रेती, विमान वगेरे) हालतां–चालतां–दोडतां ने ऊडतां देखाय छे–तो शुं ते जीव
छे? नहीं, स्पष्टपणे