Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 35 of 45

background image
: ३२ : आत्मधर्म : महा : र४९४
शीयाळी, हाथिणी, वगेरे अनेक तिर्यंच भवोमां रखड्यो ने दुःखी थयो. हाथणीना भवमां
एकवार गंगाकिनारे ते कीचडमां खूंची गयेल, त्यारे एक विद्याधरे तेने पंचपरमेष्ठीना
नमस्कारनो मंत्र संभळाव्यो; त्यांथी मरीने ते वेदवती पुत्री थई...त्यां पण, एकवार मुनि
आहार माटे आवेला त्यारे तेमनी हांसी करी...पिताए तेने रोकीने उपदेश आप्यो; पछी तेणे
श्राविकाव्रत अंगीकार कर्या. तेना पिताने रावणना जीवे (शंभुकुमारे) मारी नाखेल तेथी
क्रोधपूर्वक तेणे अज्ञानीपणे निदान बांध्युं के तें मारा पिताने मारी नांख्या तेथी हुं पण तारा
नाशनुं कारण बनीश. (अने सीताना भवमां ते रावणना नाशनुं कारण थई.) सीताजी अत्यारे
स्वर्गमां छे. भविष्यमां सीतानो जीव चक्रवर्ती थशे अने त्यारे रावणनो जीव तेनो पुत्र थशे;
पछी रावण ज्यारे भरतक्षेत्रमां तीर्थंकर थशे त्यारे सीतानो जीव तेमना गणधर थशे. –केवी
विचित्रता छे जीवना परिणामोमां! ऊलटा परिणामोने क्षणमात्रमां जीव सुलटावी शके छे.
(विशेष पानुं ३३ मां)
वैराग्य समाचार:– सुरतमां डो. पी. वी. शाहनां मातुश्री गत ता. १३–१–६८ ना
रोज स्वर्गवास पाम्या छे; देव–गुरुना शरणे सत्संग पामीने तेओ आत्महित पामो.
उद्घाटन
हुं ज्यां जन्मुं त्यां मारा कानमां सौथी
पहेलो “अर्हंत” शब्द श्रवणमां आवो.
‘अर्हंत’ द्वारा ज मारा कर्णनुं उद्घाटन
थाओ.
अर्हंतदर्शन द्वारा ज मारा नेत्रनुं उद्घाटन
थाओ.
अर्हंतस्तवन द्वारा ज मारी जीव्हानुं
उद्घाटन थाओ.
अर्हंतचरणना स्पर्शनवडे मारा हाथनुुं
उद्घाटन थाओ.
अर्हंत–गुणोना चिन्तन वडे मारा मननुं
उद्घाटन थाओ.
अर्हंतमार्गनी सेवामां ज मारुं जीवन
वीतो.
(–एक जैन बाळकनी भावना)
भूत!
भूत क््यां रहे छे?
भूत भ्रमणामां रहे छे.
भ्रमणा ए ज मोटुं भूत छे.
शास्त्रमां मिथ्यात्वने मोटुं भूत कह्युं छे.
जो के देवगतिमां ‘भूत’ जातना व्यन्तर
देवो छे, परंतु ते भूत–देवो जीवने एवा
हेरान नथी करता के जेवुं मिथ्यात्वरूपी
भूत हेरान करे छे! माटे भ्रमणारूपी
भूतने दूर भगाडो.