: ३४ : आत्मधर्म : महा : र४९४
“शुद्धबुद्ध चैतन्यघन
स्वयं ज्योति सुखधाम! ”
आतमराम सुखधाम छे,
पछी बीजानुं शुं काम छे?
प्रश्न:– भगवान पंचपरमेष्ठीमां वधारे
उपकारी कोण छे?
उत्तर:– पांचे परमेष्ठी भगवंतो
उपकारी छे; वधारे उपकारी कोने गणवा– ते
तो जीवना परिणाम उपर आधार छे: जेमके
कोईवार एम बने के अरिहंतदेवना
समागममां पण जीव सम्यग्दर्शनादि न
पाम्यो ने कोई मुनिराज वगेरेना उपदेशथी
सम्यग्दर्शन पाम्यो. –तो तेने माटे तो
मुनिराज महा उपकारी थया. ऋषभदेवना
जीवने जुगलीयाना भवमां प्रीतिंकर
मुनिराजे प्रतिबोधीने सम्यक्त्व पमाडयुं, –
एटले तेमने माटे तो ते महा उपकारी थया.
पण समुच्चयपणे अरिहंतभगवान
जगतना सर्वोत्तम उपकारी छे, केमके तेओ
शासनना प्रवर्तक छे, मोक्षमार्गना नेता छे.
प्रश्न:– हुं कोण छुं? (M.S.JAIN)
उत्तर:– “हुं एक शुद्ध सदा अरूपी
ज्ञानदर्शनमय खरे
कंई अन्य ते मारुं जरी,
परमाणुमात्र नथी अरे! ”
(–आवा आत्मानी अनुभूति करतां
खबर पडे छे के हुं कोण छुं?)
य नव नाम–
(१) सुदर्शन (र) अमोघ (३) सुप्रबुद्ध
(४) यशोधर (प) सुभद्र (६) विशाल
(७) सुमन (८) सौमन अने
(९) प्रीतिंकर.
–आ कोई मनुष्योनां नाम नथी पण
१६ स्वर्गोथी उपर जे देवोनां रहेठाण छे
तेमांथी नव ग्रैवेयकनां आ नाम छे. आ
ग्रैवेयकोमां मिथ्याद्रष्टि जीवो थोडा छे ने
सम्यग्द्रष्टि झाझा छे. आ ग्रैवेयकोनी उपर
पछी नव अनुदिश विमानो छे, तेमां बधा
जीवो सम्यग्द्रष्टि छे. अने छेल्ले पांच
अनुत्तर विमानो (सर्वार्थसिद्धि वगेरे) छे;
त्यारपछी अमुक अंतरे सिद्धशिला छे ने
तेनाथी उपर अनंत सिद्ध भगवंतो बिराजे
छे...तेमने नमस्कार हो.
मुसाफरने–
मुसाफिर हो जा तू होशियार,
जगतमें जीवन है दिन चार।
तेरा यहाँ न कोई अपना,
जीवन है झूठा सपना।
आय अकेला जाय अकेला,
देखले जीवन अपना।
संतो ने जो ज्ञान सुनाया,
उससे होता बेडा पार।।
मुसाफिर हो जा तू होशियार,
जगतमें जीवन है दिन चार।
(‘श्रमण’ मांथी साभार)