Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : ३५ :
प्रश्न:– दया ते धर्म छे?
उत्तम:– हा; निश्चयदया ते निश्चयधर्म
छे, ने व्यवहारदया ते व्यवहारधर्म छे.
वीतरागभाव ते निश्चयदया (स्वदया) छे, ने
तेनुं फळ मोक्ष छे. करुणा भावरूप शुभराग ते
व्यवहारदया छे ने तेनुं फळ स्वर्ग छे. परंतु
शुभरागरूप जे व्यवहारदया छे ते निश्चयधर्म
नथी, ने तेनुं फळ मोक्ष नथी. निश्चयधर्म तो
वीतरागभाव ज समजवो.
केवी आनंदनी वात!
भूतकाळमां जेमणे भगवानने सेव्या.
भविष्यमां जेओ भगवान थशे ने वर्तमानमां
जेओ भगवानना मार्गे चाली रह्या छे एवा
संतोनी साथे ने साथे आपणे तेमना मार्गे
जवानुं छे.
–केवी आनंदनी वात!
मदाया (बरमा) थी बालसभ्यो
दीनेश अने मीनाबेन लखे छे के–अमने अहीं
ऋषभदेव भगवाननुं जीवनचरित्र मळ्‌युं छे ते
वांची अमने घणो ज आनंद थाय छे. आवा
अनार्यदेशमां अमने आवुं शास्त्र मळ्‌युं –
अहो! अमारा भाग्य! तमारो घणो उपकार
मानीए छीए. गुरुदेवने भक्तिपूर्वक
नमस्कार; बालविभागना बधा साथीओने
यादी. (साथे अनेक प्रश्नो लख्या छे; तेना
जवाब हवे पछी आपीशुं)
जेतपुरथी मुकेश जैन लखे छे– “नवो
अंक हाथमां लेतां ज हर्ष अनुभव्यो... नवा
वर्षनी उत्तम बोणी मळी...प्रवचननी मीठी
प्रसादी पण मळी. ‘संतोनो सिंहनाद’
गम्यो...के जे आत्माने जगाडे छे. ‘रत्नसंग्रह’
पुस्तक रत्न समान छे. तेमांना एकेक रत्न
महान अने आत्मानो राह देखाडनारा छे;
बालविभाग शरू थयो त्यारथी अमे
चीवटपूर्वक अभ्यास करीए छीए, ने
अमृतरूपी वांचनथी रोमरोममां धन्यता
अनुभवाय छे.
(भाईश्री, आपना सूचनो लक्षमां
लीधा छे...प्रश्नोना जवाब हवे पछी; पत्रो जरा
टूंका लगाय तो अमने विशेष अनुकूळता
रहे.)
नूतन वर्षना अभिनंदन कार्ड बाबत
केटलाय सभ्योए आनंद व्यक्त कर्यो छे.
जलगांवथी अनिल जैन लखे छे के–
अभिनंदन कार्ड मळ्‌युं; खूब आनंद! कार्डमां
लखेलुं लखाण खूबज सरस हतुं अने
धार्मिकद्रष्टिए असरकारक हतुं. तेमां पण
‘प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे..
’ ए तो खूब ज गम्युं. अमारा उपर –सौ
बाळको उपर सन्तोना आशीर्वाद कायम रहो–
ए ज अभ्यर्थना. अमदावादथी रोमेश जैन
लखे छे के “अभिनंदन कार्ड माटेनो सुंदर नवा
विचारवाळो फोटो धार्मिक प्रेरणा आपे छे–ते
आवकारवा योग्य छे.” मायाबेन जैन
राजकोटथी लखे छे के नवा वर्षना अभिनंदन
वांचतां अमने धर्मनो घणो उत्साह थयो छे.