उत्तम:– हा; निश्चयदया ते निश्चयधर्म
वीतरागभाव ते निश्चयदया (स्वदया) छे, ने
तेनुं फळ मोक्ष छे. करुणा भावरूप शुभराग ते
व्यवहारदया छे ने तेनुं फळ स्वर्ग छे. परंतु
शुभरागरूप जे व्यवहारदया छे ते निश्चयधर्म
नथी, ने तेनुं फळ मोक्ष नथी. निश्चयधर्म तो
वीतरागभाव ज समजवो.
भूतकाळमां जेमणे भगवानने सेव्या.
जेओ भगवानना मार्गे चाली रह्या छे एवा
संतोनी साथे ने साथे आपणे तेमना मार्गे
जवानुं छे.
मदाया (बरमा) थी बालसभ्यो
ऋषभदेव भगवाननुं जीवनचरित्र मळ्युं छे ते
वांची अमने घणो ज आनंद थाय छे. आवा
अनार्यदेशमां अमने आवुं शास्त्र मळ्युं –
अहो! अमारा भाग्य! तमारो घणो उपकार
मानीए छीए. गुरुदेवने भक्तिपूर्वक
नमस्कार; बालविभागना बधा साथीओने
यादी. (साथे अनेक प्रश्नो लख्या छे; तेना
जवाब हवे पछी आपीशुं)
प्रसादी पण मळी. ‘संतोनो सिंहनाद’
गम्यो...के जे आत्माने जगाडे छे. ‘रत्नसंग्रह’
पुस्तक रत्न समान छे. तेमांना एकेक रत्न
महान अने आत्मानो राह देखाडनारा छे;
बालविभाग शरू थयो त्यारथी अमे
चीवटपूर्वक अभ्यास करीए छीए, ने
अमृतरूपी वांचनथी रोमरोममां धन्यता
अनुभवाय छे.
टूंका लगाय तो अमने विशेष अनुकूळता
रहे.)
जलगांवथी अनिल जैन लखे छे के–
अभिनंदन कार्ड मळ्युं; खूब आनंद! कार्डमां
लखेलुं लखाण खूबज सरस हतुं अने
धार्मिकद्रष्टिए असरकारक हतुं. तेमां पण
‘प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे..
’ ए तो खूब ज गम्युं. अमारा उपर –सौ
बाळको उपर सन्तोना आशीर्वाद कायम रहो–
ए ज अभ्यर्थना. अमदावादथी रोमेश जैन
लखे छे के “अभिनंदन कार्ड माटेनो सुंदर नवा
विचारवाळो फोटो धार्मिक प्रेरणा आपे छे–ते
आवकारवा योग्य छे.” मायाबेन जैन
राजकोटथी लखे छे के नवा वर्षना अभिनंदन
वांचतां अमने धर्मनो घणो उत्साह थयो छे.