: ३६ : आत्मधर्म : महा : र४९४
आ नानकडा बालविभागे जैन समाजना हजारो बाळको उपर चमत्कारिक असर करी छे,
तेथी तेमां रस लेनार सुशिक्षित बाळकोनी संख्या बे हजार उपर पहोंची गई छे. समाजमां
धर्मना साचा संस्कारोना मूळीया रोपी रहेला आ विभागने विकसाववा केटलाय जिज्ञासुओ
तरफथी हार्दिक प्रोत्साहन मळी रह्युं छे ते बदल सौनो आभार! बे हजार बाळको पोते ज
पोताना आ विभागने होंसथी विकसावी रह्या छे. ने तेमनां वडीलो तेमां साथ आपी रह्या छे.
हजी वधुने वधु व्यवस्थितपणे आ विभाग विकसाववानी जरूर छे. नवा सभ्योनां नाम–
र००प रश्मीबेन जयंतिलाल जैन मुंबई–र८ र०१प नयनाबेन जे. जैन मुंबई–र८
र००६ राजेन्द्रकुमार जयंतिलाल जैन मुंबई–र८ र०१६ रूपलबेन जे. जैन मुंबई–र८
र००७ भूपेन्द्रकुमार रमणीकलाल जैन राजकोट र०१७ चेतनाबेन रमणीकलाल जैन जामनगर
र००८ राजेन्द्रकुमार आर. जैन राजकोट र०१८ प्रतीभाबेन चंदुलाल जैन कोचीन
र००९ शैलेशकुमार आर. जैन राजकोट र०१९ जिनेशकुमार चंदुलाल जैन कोचीन
र०१० दर्शनाबेन रमणीकलाल जैन राजकोट र०र० रोहितकुमार जसवंतलाल जैन अमदावाद
र०११ नयनाबेन आर. जैन राजकोट र०र१ वर्षाबेन जसवंतलाल जैन अमदावाद
र०१र नीताबेन आर. जैन राजकोट र०रर कीर्तिकुमार जगदीशचंद्र जैन जामनगर
र०१३ नरेशकुमार जयंतिलाल जैन मुंबई–र८ र०र३ रेखाबेन जगदीशचंद्र जैन जामनगर
र०१४ नीताबेन जे. जैन मुंबई–र८ र०र४ देवजी हरिभाई जैन मुंबई–३४
दरेक सभ्योने धार्मिकरस माटे धन्यवाद! धर्मना अभ्यासमां सौ उत्साहथी भाग लेशो..
आपणा बालविभागनी त्रण वात–
(१) हंमेशां जिनेन्द्रदेवनां दर्शन. (र) तत्त्वज्ञाननो अभ्यास. (३) रात्रि भोजननो त्याग.
बंधुओ, आ त्रण वातनी तो घणा खरा सभ्योए टेव पाडी छे; जेओ ते प्रमाणे न करता
होय तेओ तेनो प्रयत्न जरूर करजो. अने हवे एक चोथी वात तमारी पासे रजु करवानी
छे...जेमां एक वस्तु छोडवानी छे; आम तो ते साव सहेली वात छे, पण अत्यारना जमानामां
कुमळा बाळकोने माटे ते खास जरूरी छे...मने खातरी छे के तमे बधाय सभ्यो होंशथी ते
अपनावशो. शुं हशे ते वस्तु? ए वात आवता अंकमां. –जयजिनेन्द्र।