Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९४ : आत्मधर्म : ७ :
छूटकारो थशे, फरीने बीजी मातानुं दूध तारे नहीं पीवुं पडे...माताना पेटमां नहि
पुरावुं पडे.
भाई, अंतरमां आत्मानो महिमा अपार छे, आत्मानो वैभव अचिंत्य छे,
तेने तुं देख. अहा, जेना उदये चौद ब्रह्मांडमां अजवाळां थाय ने ईन्द्रोनां ईन्द्रासन
डगमगी जाय एवी तीर्थंकरप्रकृति, ते तारा एक विकल्पनुं फळ! –ने ए विकल्प पण
तारा स्वभावनी चीज नहि; तो विचार तो खरो के तारा अचिंत्य चैतन्यस्वभावनी
शक्ति केटली? मनुष्यलोकमां तीर्थंकर भगवाननो मंगल जन्म थतां स्वर्गमां ईन्द्रनुं
सिंहासन कंपी उठे छे, त्यारे ईन्द्रने ख्याल आवे छे के अहो! मध्यलोकमां–भरतमां
विदेहमां के ऐरवतक्षेत्रमां देवाधिदेव तीर्थंकरनो अवतार थयो, धन्य एमनो अवतार!
धन्य आ प्रसंग! जगतमां आश्चर्यकारी मंगळ प्रसंग छे...चालो, ए कल्याणक उत्सव
उजववा मध्यलोकमां जईए. अहा, भक्तिथी ऊर्ध्वलोकना ईन्द्रो पण मनुष्यलोकमां
ऊतरे–ए प्रसंग केवो! ईन्द्र चारे प्रकारना देवोनी सेना लईने ठाठमाठ सहित
भगवाननो जन्माभिषेक करवा अने पूजन वगेरे उत्सव करवा आवे छे ने
आश्चर्यकारी महोत्सव करे छे.–आवुं तो जेना स्वभावनी बहारना एक विकल्पनुं फळ,
तो एवा स्वभावना अंतरना सामर्थ्यना महिमानी शी वात! –ए तो विकल्पथी
पार! एना अनुभवना आनंद पासे जगतना स्वाद फिक्का लागे. भाई, आवो
आत्मा तुं पोते छो; तारा स्वभावनो महिमा लक्षमां लईने तेने अनुभवमां लेवानो
वारंवार उद्यम कर.
तीर्थंकरप्रभुनी माताना दोहला–मनोरथ ने स्वप्नां पण कोई लोकोत्तर होय छे,
चारे कोरनां तीर्थोनी वंदना करीए, जगतमां धर्मनी प्रभावना करीए, मेघवृष्टि थाय,
भगवानना दर्शन करीए–एवा प्रकारना भावो एमने जागे छे, केमके तीर्थंकर जेवो
लोकोत्तर पुत्र तेमनी कुखमां बिराजे छे. अहीं कहे छे के आवा लोकोत्तर पुण्यना ठाठथी
पण पार आत्माना स्वभावनी आ वात छे. लोकोत्तर पुण्यने जे स्पर्शतो नथी, तेमां
तन्मय थतो नथी एवा स्वभावना आनंदनी शी वात! आनंदस्वभावनी सन्मुख
परिणमतो आत्मा ते विकार सामे जोतो नथी, कर्मने के तेना फळने पोतामां स्वीकारतो
नथी; ने जेनाथी कर्म बंधाय छे एवा रागभावने पण पोतामां स्वीकारतो नथी. आवो
ज्ञानानंदस्वभावी आत्मा ‘चैतन्यदरियो, सुखथी भरियो’–तेना आश्रये निर्मळ पर्याय
ऊपजे छे, मूर्त–ईन्द्रियोना सबंध