–आवुं अमूर्तपणुं ज्ञानमां छे.
आत्मस्वभावनो अपार महिमा निजवैभवथी सन्तोए प्रसिद्ध कर्यो छे. आवी
शक्तिवाळो भगवान आत्मा द्रष्टिमां आवतां तेनुं परिणमन पुण्य पापथी जुदुं पडीने
स्वभाव तरफ झूके छे, एटले ते परिणमनमां आत्मशक्तिओ निर्मळपणे व्यक्त थाय छे.
अरे भाई! आवा आत्माने जाण्या वगर तुं साचा तत्त्वनो निर्णय क्यांथी करीश?
तारी निजशक्तिने जाण्या वगर तुं तेने साधीश केवी रीते? स्वसंवेदनमां आवी
शक्तिवाळो आत्मा प्रगट थाय छे, ने एवा स्वसंवेदन वडे ज आत्मा सधाय छे. पण
एने माटे जगतथी केटलो वैराग्य! केटली उदासीनता! स्वभावनो केटलो उल्लास ने
केटलो पुरुषार्थ जोईए! –आवा प्रयत्नथी स्वसंवेदन वडे चोथा गुणस्थाने
आत्मप्रतीतिरूप सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन थतां निर्मळ द्रव्य–गुण–पर्यायमां
व्यापीने आत्मा परिणमे छे; त्यां विकारनो ने कर्मनो संबंध छूटी जाय छे. –आवुं
अमूर्तज्ञाननुं सम्यक् परिणमन छे.
नहीं. चैतन्यनी खाणमां विकार नहीं ने विकारनी खाणमां हीरा नहीं. जेनी खाणमां जे
होय तेमांथी ते नीकळे. अनंत गुणमणिनी जे खाण छे एवा आत्माने द्रष्टिमां लेतां
तेमांथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी उत्तम रत्नो नीकळे छे. आत्मशक्तिमां एवी
वीरता छे के विकारने ताबे थाय नहीं. ज्ञानशक्ति पोतामां अज्ञानने आववा न द्ये,
आनंद पोतामां दुःखने आववा न द्ये, तेम अमूर्तस्वभाव मूर्तपणाने पोतामां आववा
न द्ये. आ रीते आत्मानी दरेक शक्ति पोताना स्वरूपने निर्मळपणे साधे छे.
स्वशक्तिवडे आत्मा पोतानी रक्षा करे छे ने पोताना स्वघरमां स्थिर रहे छे. आवी
अनंत शक्तिवाळो आत्मा छे तेने अंतर्मुख थईने जाणवो–मानवो–अनुभववो ते
अमूर्त थवानो, एटले के मूर्तकर्मना संबंधरहित सिद्ध थवानो उपाय छे.