बीजा जीवोने पण शुद्धचैतन्यपद देखाडीने मोक्षमार्गमां बोलावे
छे के अरे जीवो! आ मार्गे आवो...आ मार्गे आवो.
तो एवा जीवोने जगाडीने तेमनुं शुद्धपद आचार्यदेव देखाडे छे...ने ते तरफ बोलावे छे.
शुद्ध चैतन्यमय छे, तेने भूलीने रागादि पर्याय जेटलो ज पोताने न अनुभवो. राग तो
उपाधि छे, ते मार्गे न जाओ न जाओ; ए मार्ग तमारो नथी, नथी; आ चैतन्यस्वरूप
तमे छो. आ मार्गे आवो...आ मार्गे आवो. आ शुद्ध चैतन्यपद तरफ वळो, तेने ज
अनुभवो...ए ज तमारो मार्ग छे. शुद्ध–शुद्ध (अत्यंत शुद्ध) एवा आ चैतन्यपदमां ज
तमारो आनंद छे, तेने छोडीने बीजे न जाओ, तेने छोडीने बीजाने न अनुभवो.
मायाजाळमां फसायेलो छे; ते पोताना चैतन्यभावने भूल्यो छे ने चार गतिना भवमां
सूतो छे, जे–जे भवमां जे पर्याय धारण करे छे ते पर्यायने ज अनुभववामां मशगुल
छे; हुं देव छुं; हुं मनुष्य छुं; हुं रागी छुं–एम अनुभवे छे, पण एनाथी जुदा पोताना
शुद्ध ज्ञायकपदने अनुभवतो नथी ते अंध छे. ते विनाशी भावोरूपे ज पोताने अनुभवे
छे पण अविनाशी निजपदने देखतो नथी. ते निजपदनो मार्ग भूलीने ऊंधा मार्गे चडी
गयो छे. सन्तो तेने हाकल करे छे के अरे जीव! थंभी जा! विभावना मार्गेथी पाछो
वळ...ए तारा सुखनो मार्ग नथी, ए तो मायाजाळमां फसावानो मार्ग छे...माटे ए
मार्गेथी रूक जा अने आ तरफ आव...आ तरफ आव. तारुं आनंदमय सुखधाम अहीं
छे...आ तरफ आव. देव तुं नहि, मनुष्य तुं नहि, रागी