भजी रह्या छे. भाई, तारी एकेक शक्तिमां महान सामर्थ्य छे, तेने ओळखीने तेने
भज. कर्मना संबंधने तोडवानी शक्ति तारामां छे. कर्म साथे निमित्त–नैमित्तिकसंबंध ते
स्वीकार छे. शुद्ध स्वभावनी द्रष्टिथी जे निर्मळपर्याय प्रगटी तेने पण कर्म साथे संबंध
नथी; भावबंधनोय संबंध ते निर्मळपर्यायमां नथी. शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय ते ज
आत्मा छे, तेमां विकार नहि, परनो संबंध नहि.
बांधनार नथी, तेमां कर्मनो संबंध नथी. आवी पर्याय सहित भगवान आत्मा
स्वानुभवमां प्रगटे छे, स्वानुभवमां आनंदनो दरियो डोले छे. स्वानुभवमां निर्मळ
पर्याय सहित आत्मा प्रकाशमान थयो तेना गंभीर भावोनुं आ वर्णन छे. अहा,
स्वानुभूतिना एक टंकारे जे केवळज्ञान ल्ये–एवी महान जेनी ताकात, तेने पोताना
आत्मानी आ वात न समजाय–एम कहेवुं ते तो लाज छे, शरम छे. पोतानुं स्वरूप
पोताने केम न समजाय? समजवानी खरी लगन होय तो जरूर समजाय. ज्ञानस्वरूप
आत्माने अज्ञानमां रहेवुं ने संसारमां जन्म–मरण धारण करवा ते तो कलंक छे–
शरमनी वात छे. श्री योगीन्दुदेव योगसारमां कहे छे के–
लागे छे!! भवना अभावनी वात समजवामां तने उमंग–उत्साह नथी आवतो ने
संसारनी वातमां तने उत्साह आवे छे–तो तुं भवथी क्यारे छूटीश? भवथी छूटवुं
होय, शरीररहित थवुं होय तो ध्यानवडे तारा अंतरमां अशरीरी आत्मस्वभावने
देख...अशरीरी आत्माना अनुभव वडे तने अशरीरी सिद्धदशा थशे, ने शरमजनक
जन्मोथी तारो