Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 45

background image
: ६ : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
आत्माना चैतन्यमंदिरमां बिराजमान अनंत शक्तिरूपी देवीनुं आ वर्णन छे
एकेक शक्ति दिव्य शक्तिवाळी देवी छे. पण निजशक्तिने भूलीने मूर्खजीवो परने ज
भजी रह्या छे. भाई, तारी एकेक शक्तिमां महान सामर्थ्य छे, तेने ओळखीने तेने
भज. कर्मना संबंधने तोडवानी शक्ति तारामां छे. कर्म साथे निमित्त–नैमित्तिकसंबंध ते
व्यवहार छे, शुद्धस्वभावनी द्रष्टिमां ते संबंधनो स्वीकार नथी; तेमां तो शुद्धतानो ज
स्वीकार छे. शुद्ध स्वभावनी द्रष्टिथी जे निर्मळपर्याय प्रगटी तेने पण कर्म साथे संबंध
नथी; भावबंधनोय संबंध ते निर्मळपर्यायमां नथी. शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय ते ज
आत्मा छे, तेमां विकार नहि, परनो संबंध नहि.
अरे, आत्मा अनंत चैतन्यशक्तिनो दरियो; ए दरिया ते कोईथी बंधाता हशे?
आ दरियो पोतानी पर्यायना स्वच्छ तरंगपणे उल्लस्यो त्यां कोई तेने रोकनार नथी,
बांधनार नथी, तेमां कर्मनो संबंध नथी. आवी पर्याय सहित भगवान आत्मा
स्वानुभवमां प्रगटे छे, स्वानुभवमां आनंदनो दरियो डोले छे. स्वानुभवमां निर्मळ
पर्याय सहित आत्मा प्रकाशमान थयो तेना गंभीर भावोनुं आ वर्णन छे. अहा,
स्वानुभूतिना एक टंकारे जे केवळज्ञान ल्ये–एवी महान जेनी ताकात, तेने पोताना
आत्मानी आ वात न समजाय–एम कहेवुं ते तो लाज छे, शरम छे. पोतानुं स्वरूप
पोताने केम न समजाय? समजवानी खरी लगन होय तो जरूर समजाय. ज्ञानस्वरूप
आत्माने अज्ञानमां रहेवुं ने संसारमां जन्म–मरण धारण करवा ते तो कलंक छे–
शरमनी वात छे. श्री योगीन्दुदेव योगसारमां कहे छे के–
ध्यानवडे अभ्यंतरे देखे जे अशरीर,
शरमजनक जन्मो टळे, पीए न जननी–क्षीर. (६०)
अरे, प्रभु! तुं अशरीरी, तने आ शरमजनक शरीर धारण करीने संसारमां
रखडतां शरम नथी आवती? –ने भवना अभावनी आ वात सांभळतां तने शरम
लागे छे!! भवना अभावनी वात समजवामां तने उमंग–उत्साह नथी आवतो ने
संसारनी वातमां तने उत्साह आवे छे–तो तुं भवथी क्यारे छूटीश? भवथी छूटवुं
होय, शरीररहित थवुं होय तो ध्यानवडे तारा अंतरमां अशरीरी आत्मस्वभावने
देख...अशरीरी आत्माना अनुभव वडे तने अशरीरी सिद्धदशा थशे, ने शरमजनक
जन्मोथी तारो