Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 45

background image
: फागण : २४९४ : आत्मधर्म : ११ :
होय. जेनो स्वाद लेतां, जेमां रहेतां, जेमां ठरतां आत्माने सुखनो अनुभव थाय ते
निजपद छे. जेना वेदनमां आकुळता थाय ते निजपद नथी, ते तो पर पद छे, आत्माने
माटे अपद छे. तेने अपद जाणीने तेनाथी पाछा वळो, ने आ शुद्ध आनंदमय चैतन्यपद
तरफ आवो.
जेमां कोई विकल्प नथी एवुं आ निर्विकल्प एक ज चैतन्यपद आस्वादवा जेवुं
छे. सम्यग्दर्शनमां चैतन्यनो स्वाद छे, सम्यग्ज्ञानमां चैतन्यनो स्वाद छे, सम्यक्
चारित्रमांय चैतन्यनो स्वाद छे. रागनो स्वाद रत्नत्रयथी बहार छे; निजपदमां रागनो
स्वाद नथी. राग ए तो दुःख छे, विपदा छे, चैतन्यपदमां विपदा नथी. जेमां आपदा ते
अपद, जेमां आपदानो अभाव ने सुखनो सद्भाव ते स्वपद; आनंदस्वरूप आत्मानी
संपदाथी जे विपरीत छे ते विपदा छे. राग ते चैतन्यनी संपदा नथी पण विपदा छे;
आत्मानुं ते अपद छे. जेम राजानुं स्थान मेला उकरडामां न शोभे, राजा तो सोनाना
सिंहासने शोभे; तेम आ जीव–राजानुं स्थान रागद्वेष क्रोधादि मलिनभावोमां नथी
शोभतुं, तेनुं स्थान तो पोताना शुद्ध चैतन्यसिंहासने शोभे छे. रागमां चैतन्यराजा
नथी शोभता; ए तो अपद छे, अस्थिर छे, मलिन छे, विरुद्ध छे; चैतन्यपद शाश्वत छे,
शुद्ध छे, पवित्र छे, पोताना स्वभावरूप छे. आवा शुद्ध स्वपदने हे जीवो! तमे
जाणो...तेने स्वानुभव–प्रत्यक्ष करो. आवी निजपदनी साधना ते मोक्षनो उपाय छे.
चांदो अने सूरज
गतांकमां आपणे प्रश्नो पूछेल के चांदो मोटो के सूरज? अने चांदो ऊंचो के
सूरज? अहीं तेना उत्तर साथे, चंद्र अने सूर्य संबंधी जाणवा जेवी केटलीक विगतो
जैनसिद्धान्तअनुसार रजु करवामां आवी छे. प्राचीन आचार्योनुं बनावेलुं
त्रिलोकप्रज्ञप्ति नामनुं शास्त्र छे तेना आधारे आ विगतो लखी छे.
प्रथम ए जाणीए के चंद्र अने सूर्य शुं छे? आपणने अहींथी जे प्रकाशमान
वस्तु चंद्र अने सूर्य तरीके नजरे पडे छे ते चंद्रलोक अने सूर्यलोकनी पृथ्वीना तळियानो
भाग देखाय छे. चंद्रलोक अर्थात् चंद्रविमान मणिमय–पृथ्वीनुं बनेलुं छे, अने ते
पृथ्वीकायमां जे एकेन्द्रिय जीव छे ते उद्योतनामकर्म सहित छे, तेथी ते स्वयं प्रकाशमान
अतिशय शीतल किरणोथी संयुक्त छे. अने ते चंद्रविमाननी अंदर ज्योतिषी देवोनी
नगरीनी रचना छे. तेनी वच्चेना राजांगणमां भव्य रत्ननिर्मित जिनप्रासाद छे, तेमां
रत्नमय जिनबिंब बिराजे छे. ने चंद्रलोकना स्वामी ईन्द्र