: २४ : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
हशे! पुत्रोनो संकोच जोईने भरत बोल्या–पुत्रो! तमे संकोच न राखो, जे सत्य होय
ते कहो.
त्यारे कुमारो द्रढतापूर्वक बोल्या–पिताजी! निश्चयरत्नत्रय ए ज मोक्षनुं कारण
छे. व्यवहारधर्म तो शुभराग छे, ते मोक्षनुं कारण नथी; मामाजीनी वात बिलकुल सत्य
छे, आपे पण ते मंजुर करवी जोईए.
छेल्ला कुमारोनी द्रढता जोईने चक्रवर्तीए कह्युं–बेटा, मने एम हतुं के तमारा
कुंवारा भाईओए तो मामानो पक्ष ग्रहण कर्यो परंतु तमे अवश्य मारा पक्षमां रहेशो.
परंतु तमे पण मामानो ज पक्ष ग्रहण कर्यो...अच्छा! तमारी मरजी!
कुमारो बोल्या पिताजी अमे जूठ केम बोली शकीए? अमने जे सत्य लाग्युं ते
ज कह्युं छे. सत्य वात तो आपे पण स्वीकारवी जोईए.
कुमारोनी वात सांभळीने भरतचक्रवर्ती प्रसन्न थया, अने नमिराज प्रत्ये
कहेवा लाग्या–जुओ, गमे तेम तोय आ बधा श्री भगवान आदिनाथ स्वामीना पौत्रो
छे! तेमनुं शुं वर्णन करुं! साक्षात पिता होवा छतां पण तेओए मारो पक्ष ग्रहण करीने
वात न करी, पण जे यथार्थ मोक्षमार्ग छे ते ज तेओए कह्यो. आथी तेमनी
तत्त्वज्ञाननी द्रढता अने सत्यप्रियता छे ते जणाया वगर रहेती नथी.
* * *
अहा, धन्य छे ते धर्मकाळ अने धन्य ते धर्मात्माओ! ज्यारे पारणामांथी ज
बाळकोने तत्त्वनुं सींचन मळतुं, साचुं तत्त्वज्ञान घेर घेर मळतुं अने ते आत्माओ पण
कुमारवयथी ज तत्त्वना प्रेमीओ हता, तत्त्वज्ञान ए तेओना जीवननुं मुख्य अंग हतुं...
आजे...पण...
हजी तत्त्वज्ञाननो सर्वथा विच्छेद नथी थयो, सत्पुरुषोनी परम करुणाथी आजे
पण सत्य तत्त्वनो धोध भारतमां वही रह्यो छे...भारतना आजना कुमारो पण
भरतना पुत्रोनी जेम तत्त्वज्ञानमां रस लेता बनो.
(जुओ–भरतेशवैभव भाग २ पृ. २२४–२२८)