: २६ : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
समजातुं. प्रत्यक्ष जोगे वगर समजाव्ये पण स्वरूपस्थिति थवी संभवित
मानीए छीए, अने तेथी एम निश्चय थाय छे के ते जोगनुं अने ते प्रत्यक्ष
चिंतननुं फळ मोक्ष होय छे. कारणके मूर्तिमान मोक्ष ते सत्पुरुष छे. (२४९)
(३२१) सद्धर्मनो जोग सत्पुरुष विना होय नहि; कारणके असत्मां सत् होतुं नथी.
(२४९)
(३२२) केम आपणे मानीए छीए, अथवा केम वर्तीए छीए ते जगतने देखाडवानी
जरूर नथी; पण आत्माने आटलुं ज पूछवानी जरूर छे, के जो मुक्तिने ईच्छे
छे तो संकल्प–विकल्प राग–द्वेषने मूक अने ते मूकवामां तने कांई बाधा होय
तो ते कहे; ते तेनी मेळे मानी जशे अने ते तेनी मेळे मूकी देशे. (३७)
(३२३) ज्यांत्यांथी राग–द्वेष रहित थवुं ए ज मारो धर्म छे; अने ते तमने अत्यारे
बोधी जउं छुं. (३७)
(३२४) उपयोग ए ज साधना छे. (३७)
(३२प) निरंतर उदासीनतानो क्रम सेववो; सत्पुरुषनी भक्ति प्रत्ये लीन थवुं;
सत्पुरुषोनां चरित्रोनुं स्मरण करवुं; सत्पुरुषोनां लक्षणनुं चिंतन करवुं;
सत्पुरुषोनी मुखाकृतिनुं हृदयथी अवलोकन करवुं; तेनां मन, वचन, कायानी
प्रत्येक चेष्टानां अद्भुत रहस्यो फरी फरी निदिध्यासन करवां; तेओए सम्मत
करेलुं सर्व सम्मत करवुं. –आ ज्ञानीओए हृदयमां राखेलुं, निर्वाणने अर्थे
मान्य राखवा योग्य, श्रद्धवा योग्य, फरी फरी चिंतववा योग्य, क्षणे क्षणे,
समये समये तेमां लीन थवा योग्य, परम रहस्य छे. अने ए ज सर्व
शास्त्रनो, सर्व संतनां हृदयनो, ईश्वरना घरनो मर्म पामवानो महामार्ग छे.
अने ए साधवानुं कारण कोई विद्यमान सत्पुरुषनी प्राप्ति अने ते प्रत्ये
अविचळ श्रद्धा ए छे.
अधिक शुं लखवुं? आजे, गमे तो काले, गमे तो लाख वर्षे अने गमे तो
तेथी मोडे अथवा वहेले, एज सूझये, ए ज प्राप्त थये छूटको छे. सर्व प्रदेशे
मने तो एज सम्मत छे. (१७२)
(३२६) आत्मा विनयी थई सरळ अने लघुत्वभाव पामी सदैव सत्पुरुषना
चरणकमळ प्रति रह्यो, तो जे महात्माओने नमस्कार कर्यो छे ते महात्माओनी
जातिनी रिद्धि छे, ते जातिनी रिद्धि संप्राप्य करी शकाय. (पप)