Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 33 of 45

background image
: ३० : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
– जे थाय ते सारा माटे –
आपणा गुरुदेवने एक मोटा भाई हता, तेमनुं नाम खुशालभाई; तेमने
वारंवार एम बोलवानी टेव हती के ‘जे थाय ते सारा माटे !’ ए वात प्रसंगवश
गुरुदेवे चर्चामां याद करी, त्यारे ते सांभळतां थयुं के वाह! जगतमां जे कांई प्रसंग बने
तेमां ‘जे थाय ते सारा माटे’ ए वात लागु पाडीने तेमांथी पोतानुं हित शोधी ल्ये तो
जीवने केटली शांति ने समाधान रहे! आ संबंधमां थोडाक प्रसंग विचारीए; जेम के–
सीताजीनी अग्निपरीक्षा थई ते सारा माटे,
एमने जल्दी अर्जिका थवानो अवसर आव्यो.
सज्जननी कोई निंदा करे तो सारा माटे,
एने वैराग्य अने जागृती रह्या करे.
सुदर्शन–धर्मात्मानी कसोटी थई ते सारा माटे,
एने संसारथी विरक्त थईने मुनिपणानो ने
केवळज्ञाननो जल्दी अवसर आव्यो.
आ संबंधमां बीजी एक लोककथा याद आवे छे : एक हतो राजा. एने एक
दीवान; ज्यारे होय त्यारे ए समाधानप्रिय दीवानने पण आपणा खुशालभाईनी
माफक एम बोलवानी टेव के ‘ जे थाय ते सारा माटे.’ हवे एकवार एवुं बन्युं के राजा
अने दीवान बंने वनमां गयेला, त्यां कांईक थतां राजानी एक आंगळी कपाई गई; ने
सहजभावे दीवानथी बोलाई गयुं के– ‘जे थाय ते सारा माटे!’
राजा तो मनमां समसमी गयो....एक तो आंगळी कपाणी, ने उपरथी दीवाने
कह्युं के जे थाय ते सारा माटे! –एटले राजाने तो एवी खीज चढी के दीवानने उपाडीने
फेंक्यो कूवामां.
पछी राजाए कूवामां डोकियुं कर्युं तो दीवानजी कूवामां पड्या पड्या पण कहे छे
के महाराज! जे थाय ते सारा माटे!’
राजा तो एनी मुर्खाई उपर हसता हसता चाल्या गयो. थोडे दूर गयो त्यां तो
जंगलना क्रूर भीलोए ए राजाने पकड्यो. बीजे दिवसे नरबली चडाववानो हतो;