Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : ७
वस्तुनी अस्तिमां ऊभो रहीने तुं विकल्पने तोडीश? विकल्पना अभावमां शून्यता न
होय पण आनंदनी अस्ति होय. शुद्ध आत्मा छे, तेनी पर्याय छे, तेमां उत्पाद–व्यय छे,
अशुद्धता छे ते टळीने शुद्धता थाय छे, –एम बधा बोलना स्वीकार वगर आत्माने
अनुभव थाय नहि ने विकल्प तूटे नहि.
सामान्यनो आविर्भाव, एटले के ज्ञानपर्याय अंर्तस्वभाव तरफ झुकीने
अनुभव करे छे त्यारे तेमां विशेषरूप भेदोनुं लक्ष रहेतुं नथी, तेमां अभेदरूप एकतानो
ज अनुभव छे, तेथी तेने सामान्यनो आविर्भाव कहेवाय छे. निर्मळपर्याय सामान्य
साथे अभेद थईने एकरूप परिणमी, त्यां विशेष–ज्ञेयो प्रत्ये ज्ञाननुं लक्ष न रह्युं एटले
ते पर्यायमां विशेषनो तिरोभाव थयो ने सामान्यनो आविर्भाव थयो. –आवा ज्ञाननो
अनुभव सम्यग्द्रष्टिने छे, पण मिथ्याद्रष्टिने आवा ज्ञाननी खबर नथी; साची समजण
नथी एटले सुख पण नथी.
समज विनानुं रे सुख नथी जीवने रे....
रवि रवि करतां रे रजनी टळे नहि रे...
अर्कथी अंधारा जाय...तेम समजथी सुख थाय...
ज्ञानसूर्य प्रगट थतां अंधारा मटे छे...
आत्मा पोते पोताना स्वक्षेत्रमां ज पोताने अनुभवे छे. बहारमां लक्षने एकाग्र
करवुं पडतुं नथी. अंतर्मुख पोतामां एकाग्रता करतां जैनशासन प्रगटे छे. शुद्धद्रव्य ने
शुद्धपर्याय बंनेने जिनशासन कहेवाय छे. शुद्ध आत्माने लक्षमां लेतां तेमां शुद्धपर्याय
पण आवी ज जाय छे, केम के पर्याय अंतरमां अभेद थई त्यारे आनंदनो अनुभव
थाय छे. जैनशासन एटले भावश्रुतज्ञान, ते मोक्षमार्ग छे; शुद्धआत्माना अनुभवमां
समस्त श्रुतज्ञान समाई जाय छे. ते राग वगरनुं छे, ईन्द्रियना अवलंबन वगरनुं छे;
ज्ञानी तो पोताने सर्वत: एक ज्ञानरसपणे ज अनुभवे छे.
ज्यारे सम्यग्दर्शन प्रगटे छे ते वखते परज्ञेयनुं लक्ष नथी, स्वज्ञेयरूप शुद्धात्मा
उपर ज ज्ञाननुं लक्ष छे, तेथी ते पर्यायमां सामान्यज्ञाननो आविर्भाव (प्रगटता) छे,
अने विशेष ज्ञेयाकारज्ञाननो तिरोभाव छे. परभावोथी भिन्न