होय पण आनंदनी अस्ति होय. शुद्ध आत्मा छे, तेनी पर्याय छे, तेमां उत्पाद–व्यय छे,
अशुद्धता छे ते टळीने शुद्धता थाय छे, –एम बधा बोलना स्वीकार वगर आत्माने
अनुभव थाय नहि ने विकल्प तूटे नहि.
ज अनुभव छे, तेथी तेने सामान्यनो आविर्भाव कहेवाय छे. निर्मळपर्याय सामान्य
साथे अभेद थईने एकरूप परिणमी, त्यां विशेष–ज्ञेयो प्रत्ये ज्ञाननुं लक्ष न रह्युं एटले
ते पर्यायमां विशेषनो तिरोभाव थयो ने सामान्यनो आविर्भाव थयो. –आवा ज्ञाननो
अनुभव सम्यग्द्रष्टिने छे, पण मिथ्याद्रष्टिने आवा ज्ञाननी खबर नथी; साची समजण
नथी एटले सुख पण नथी.
रवि रवि करतां रे रजनी टळे नहि रे...
अर्कथी अंधारा जाय...तेम समजथी सुख थाय...
ज्ञानसूर्य प्रगट थतां अंधारा मटे छे...
शुद्धपर्याय बंनेने जिनशासन कहेवाय छे. शुद्ध आत्माने लक्षमां लेतां तेमां शुद्धपर्याय
पण आवी ज जाय छे, केम के पर्याय अंतरमां अभेद थई त्यारे आनंदनो अनुभव
थाय छे. जैनशासन एटले भावश्रुतज्ञान, ते मोक्षमार्ग छे; शुद्धआत्माना अनुभवमां
समस्त श्रुतज्ञान समाई जाय छे. ते राग वगरनुं छे, ईन्द्रियना अवलंबन वगरनुं छे;
ज्ञानी तो पोताने सर्वत: एक ज्ञानरसपणे ज अनुभवे छे.
अने विशेष ज्ञेयाकारज्ञाननो तिरोभाव छे. परभावोथी भिन्न