Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आत्मधर्म : चैत्र २४९४
ज्ञानमात्रभावपणे धर्मी पोताने अनुभवे छे. अज्ञानी रागवाळो बंधनवाळो पोताने
अनुभवे छे पण ते ज वखते तेनाथी जुदो ज्ञानमात्रभाव छे तेने अज्ञानी देखतो नथी,
तेथी जुदुं ज्ञान तेने ढंकाई गयुं छे, तेने तो ज्ञेय साथे भेळसेळवाळुं ज्ञान ज देखाय छे,
एकलुं सामान्यज्ञान तेने देखातुं नथी; एटले तेने जैनशासननी के भगवानना
उपदेशनी खबर नथी, भावश्रुतज्ञान तेने खील्युं नथी.
स्वज्ञेयाकार जे ज्ञान परिणम्युं तेने सामान्यज्ञाननो आविर्भाव कह्यो, केमके
तेमां परज्ञेयरूप विशेषोनो तिरोभाव छे. परज्ञेयने जाणे त्यारे पण धर्मी ज्ञानने तो
ज्ञानपणे ज अनुभवे छे; परज्ञेयने जाणतां तेनी साथे ज्ञान भेळसेळ थई गयुं एम
ज्ञानी मानता नथी. अज्ञानी तो परने जाणतां ज्ञानने पर साथे भेळसेळ थई जवानुं
मानीने पोताना ज्ञानने ढांकी दे छे, भिन्न ज्ञानने ते अनुभवतो नथी.
शुद्ध जीवस्वरूपने भूलीने ज्ञेयोमां ज जे लुब्ध छे, ज्ञानने भूलीने ज्ञेयोमां ज
एकता माने छे तेने आनंदना स्वादरूप जीवभाव प्रगटतो नथी; परने ज ज्ञान अनुसरे
छे तेथी तेने चैतन्यनो स्वाद आवतो नथी.
खारा स्वादवाळुं तो मीठुं छे, तेने शाकना संयोगथी शाक ज खारुं एम
गृद्धीवाळा लोको देखे छे, तेम ज्ञाननो जुदो स्वाद लक्षमां न लेतां अज्ञानी ज्ञेयोना
संबंधवाळुं ज ज्ञान अनुभवे छे, रागने जाणतां ज्ञान ज जाणे रागी थई गयुं–एम
अज्ञानी अनुभवे छे, पण रागादि ज्ञेयोथी ज्ञाननी भिन्नताने ते जाणतो नथी.
ज्ञेयोना संबंध वगरना एकला ज्ञाननो ज देखवुं ते सामान्य ज्ञाननो
आविर्भाव छे; अने विशेषना आविर्भाव वखते पण (एटले के परज्ञेयने जाणती
वखते पण) परमार्थे ज्ञानने तो ज्ञानपणे ज ज्ञानी देखे छे. परने जाणतां कांई पररूपे
ज्ञान थई गयुं नथी. सामान्यना अनुभव वखते जे ज्ञान अनुभवमां आव्युं,
विशेषज्ञानपणे पण ते ज ज्ञान अनुभवमां आवे छे. सामान्य अने विशेष बंने एक
जात छे, जुदी जात नथी.
(अनुसंधान १७मे पाने)