Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : ९
धर्म एटले सुख

मुमुक्षु भाई श्री नवलचंद जे. शाहे गुरुदेवना
प्रवचनअनुसार धर्मनुं स्वरूप लख््युं हतुं. –जेनी शैली सुगम होवाथी
अहीं आप्युं छे; –ते सर्वे जिज्ञासुओने उपयोगी थशे.
(सं.)
[अमर जीवनी प्राप्तिनी रीत]
धर्म सुख माटे छे : दरेक जीव सुख चाहे छे. खोटा उपायथी सुख मळतुं नथी,
पण चाहना तो सहुने सुखनी ज छे. धर्म सुखनो उपाय छे.
धर्म एटले वस्तुनुं स्वरूप : हुं जे पदार्थ छुं, ते कोण छे, क्यारथी छे, कोनाथी
टके छे, केवा स्वरूपे छे, कयांसुधी रहे छे? वगेरे नक्की करीने पछी शुं करवुं घटे छे तेनो
विचार करवो. आम न थाय तो अमस्तुं दुःख उत्पन्न थाय छे.
जेम सर्प करड्यो होय एकने, अने बीजो कहे के मने झेर चड्युं; खाधुं होय
नोकरे अने शेठ कहे के मारुं पेट भरायुं; ताव आव्यो होय शरीरमां, ने जुदा प्रदेशोमां
(असंख्य चेतनप्रदेशोमां) रहेलो जीव कहे के मने ताव आव्यो; खाधुं शरीरे अने
अरूपी सूक्ष्म चेतनपदार्थ कहे के में खाधुं; –आम साचा निर्णय वगर खोटुं दुःख उत्पन्न
थाय. तेथी हवे एटलुं तो पहेलां नक्क्ी करवुं के हुं कोण छुं? दरेक जीव पोतानी अस्ति
एटले पोतानुं होवापणुं, पोतानुं ‘अहं’ पणुं तो चाहे छे, (परमां ‘अहं’ पणुं ते दोष
छे, परंतु पोतामां ज पोतानुं अहंपणुं एटले के स्वमां ज स्वबुद्धि–ते दोष नथी पण ते
तो श्रद्धानुं कार्य छे,) पोतानो अभाव कोई चाहतुं नथी. पोते कई अस्ति छे? तेनो
निर्णय करवा माटे जिनेन्द्रभगवाने सरल अने अकाट्य उपाय बताव्यो छे; ते उपाय
एटले छ द्रव्योनां लक्षण सहित विभाग करवो ते.
तमे शरीर नथी, तमे जीव छो:
जीव अने अजीव (–पुद्गल–धर्मास्ति–अधर्मास्ति–आकाश ने काळ)–आ द्रव्यो
एकबीजाथी भिन्न छे. आम होवाथी एकद्रव्य बे द्रव्य होई शके नहि; जेम