Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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१० : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
एक जीव मात्र जीव ज होय, अजीव न होय. जीव पोते जीव पण होय, ने शरीर पण पोते
होय –एम न बने. आ रीते तमे शरीर नथी पण जीव छो.
जीव ज्ञानस्वरूप छे :–
हवे जीव एवा तमे सुखना चाहक छो, सुखनो प्रश्न करो छो, उत्तर पण तमे ज
सांभळशो. तो ज्ञानना साधन सिवाय आम प्रश्न–उत्तर न थाय. माटे तमे
ज्ञानभाववाळा, अनेक गुणसंपन्न एक पदार्थ छो एम नक्क्ी थयुं. एटले तमे ज्ञाननुं
साधन करो छो, तेथी तमे जीव ज छो; शरीर वगेरे अन्य पदार्थो तमे नथी. आ रीते ‘हुं
कोण छुं’ एनो निर्णय ए थयो के जीव ज हुं छुं, ने शरीरादि हुं नथी.
हवे जीवनुं स्वरूप ज्ञान–चेतन अने अरूपी छे. जाणवानुं कार्य थाय छे ते जीवनो
अंश छे. ‘जेवो अंश तेवो अंशी.’ –एटले तमे ज्ञानस्वरूप जीव छो. आखुं जीवद्रव्य अरूपी
सूक्ष्म ज्ञानस्वरूपी छे; तेनुं क्षेत्र असंख्यप्रदेशी लोकप्रमाण, ते हाल संकोचाईने देहप्रमाण
छे. हुं देह छुं– एम तमे अनादिथी मानो छो तोपण अरूपी चेतनस्वरूपी असंख्यप्रदेशी
जीव ज तमे हजी छो, एनो पुरावो ए छे के तमे उपयोग हजी करो छो. अनादिथी आ
प्रकारे एक ज भावे ज्ञानरूप रह्या छो, कदी शरीररूप–जडरूप थया नथी, थशो पण नहि.
अन्य जे पांच अचेतन–जड द्रव्यो छे ते तो तमने केम उत्पन्न करे? –केम के तमे तो
चेतन छो; तमे अचेतन नथी. वळी बीजो चेतन–जीव तमने बनावे तो ते पोते घटी जाय.
माटे आ जीव स्वयंभू पोताथी ज अनादिथी ज्ञानप्रदेशोमां ज्ञानरूपे व्यक्त थतो बेठो छे.
जीवनुं जीवन चेतनभाव वडे छे :–
हवे ज्ञानस्वरूप जीव अनादिथी छे ते तो बराबर, पण ते शेनाथी पुष्टि पामे छे?
शेनाथी टके छे? भाई, पांच शेर धीमां पांच शेर माटी भेळववाथी घी दश शेर न थाय,
केमके बंनेनी जात जुदी छे. तेम चेतनपदार्थ, अचेतन एवा स्थूल दाळ–भात–रोटली–घी–
हवा–पाणी–श्वास तेमां मिश्र–भेळसेळ थईने पोतानुं चेतनपणुं चालु राखे अगर पुष्ट
करे–ते असंभव छे, केमके बंनेनी जात जुदी छे. आम अन्य पदार्थ वगर ज आ जीव
अनादिथी जीवपणे छे; ते जीवपणे चेतनभावने लईने छे. हवे,
–हवे विचारो के, चेतनभाव कोणे आप्यो? अचेतन तो क्यांथी आपे? एनामां
चेतन छे ज क्यां? जो बीजा चेतनपदार्थो आ आत्माने चेतनभाव आपे तो तेओनुं
चेतनपणुं घटी जाय. माटे पोते पोतानो चेतनभाव बीजा पासेथी मेळवतो नथी; पोते ज
चेतनभाव लईने बेठो छे माटे स्वालंबी छे.