होय –एम न बने. आ रीते तमे शरीर नथी पण जीव छो.
ज्ञानभाववाळा, अनेक गुणसंपन्न एक पदार्थ छो एम नक्क्ी थयुं. एटले तमे ज्ञाननुं
साधन करो छो, तेथी तमे जीव ज छो; शरीर वगेरे अन्य पदार्थो तमे नथी. आ रीते ‘हुं
कोण छुं’ एनो निर्णय ए थयो के जीव ज हुं छुं, ने शरीरादि हुं नथी.
सूक्ष्म ज्ञानस्वरूपी छे; तेनुं क्षेत्र असंख्यप्रदेशी लोकप्रमाण, ते हाल संकोचाईने देहप्रमाण
छे. हुं देह छुं– एम तमे अनादिथी मानो छो तोपण अरूपी चेतनस्वरूपी असंख्यप्रदेशी
जीव ज तमे हजी छो, एनो पुरावो ए छे के तमे उपयोग हजी करो छो. अनादिथी आ
प्रकारे एक ज भावे ज्ञानरूप रह्या छो, कदी शरीररूप–जडरूप थया नथी, थशो पण नहि.
माटे आ जीव स्वयंभू पोताथी ज अनादिथी ज्ञानप्रदेशोमां ज्ञानरूपे व्यक्त थतो बेठो छे.
केमके बंनेनी जात जुदी छे. तेम चेतनपदार्थ, अचेतन एवा स्थूल दाळ–भात–रोटली–घी–
हवा–पाणी–श्वास तेमां मिश्र–भेळसेळ थईने पोतानुं चेतनपणुं चालु राखे अगर पुष्ट
करे–ते असंभव छे, केमके बंनेनी जात जुदी छे. आम अन्य पदार्थ वगर ज आ जीव
अनादिथी जीवपणे छे; ते जीवपणे चेतनभावने लईने छे. हवे,
चेतनपणुं घटी जाय. माटे पोते पोतानो चेतनभाव बीजा पासेथी मेळवतो नथी; पोते ज
चेतनभाव लईने बेठो छे माटे स्वालंबी छे.