लोभ–राग–द्वेषादि करतो हतो ते छूटी गया. कारण के ते पदार्थो मळे के न मळे, छेदाय के
भेदाय, आग लागे के चोराई जाय–तोपण मारा चेतनमांथी कांई चाल्युं जतुं नथी, हुं तो
तेना वगर ज जीवुं छुं. ते पदार्थो वगर ज जीव जीवे छे एटले तेमना कारणे कषाय
करवानुं न रह्युं. वळी मरणनी बीक न रही एटले मरण वखते पण चेतनभावरूप समाधि
ज रहेशे, केमके हुं तो चेतन छुं. आत्मा पोता सिवायना बीजा पदार्थो ईंद्रियो,
ईंद्रियविषयो, खोराक, मकान, शरीर के सगासंबंधी ते बधामांथी कांई पोतानुं चेतनपणुं
(जीवन) लेतो नथी, एटले के तेमनाथी आत्मानुं जीवन नथी, तेथी ते बधा पदार्थो
नकामा लागे छे, एटले तेनो मोह रहेतो नथी. हुं मारा चेतनभावथी जीवतो छुं ने ते तो
मारी साथे ज छे–कदी माराथी जुदुं नथी.
मरण नथी पण चेतनमय मारुं जीवन चालु ज छे. –पछी मृत्युनो भय केवो? –असमाधि
केवी?
नकामा ज लागशे, तेमना वडे कांई मारा चेतनभावनी पुष्टि नहि थाय. हुं मारा
चेतनप्रदेशोमां रहेतो, चेतनभावथी ज पुष्ट रहेतो, स्व–भावने वापरतो थयो छुं. अहीं के
देवलोकमां, विदेहमां के मोक्षमां, सर्वत्र मारुं जीवन एक प्रकारनुं छे ने मारा चेतन प्राणथी
ज ते पुष्ट छे. तेथी मारुं जीवन टकाववा कोई क्षेत्र, कोई काळ के कोई संयोगो साथे मने
मतलब नथी. हुं मारा स्व–भावोथी, चेतन सुख वगेरेथी प्रभु थयो छुं.
आत्मानुं जीवन शाश्वत छे ते पण समजावो.