२० : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
भाई! तुं तो ज्ञानस्वरूप छो. तारुं चैतन्यनेत्र जगतनुं साक्षी छे, पण पोताथी बाह्य
एवा रागादिने के जडनी क्रियाने ते करनार नथी. शुद्ध ज्ञानमां परनुं कर्ता–भोक्तापणुं समातुं
नथी. ज्ञानमां रागादिनुं कर्तापणुं मानवुं ते तो आंख पासे पथरा उपडाववा जेवुं छे.
ज्ञानभावनी मूर्ति आत्मा छे, ते ज्ञानरूपे परिणमेला ज्ञानी रागादिना कर्ता–भोक्तापणे
परिणमता नथी. ज्ञानना परिणमनमां रागनुं परिणमन नथी. शुद्धपरिणतिमां अशुद्ध
परिणतिनुं कर्तृत्व केम होय ? शुद्धपरिणतिरूपे परिणमेलो जीव पण रागादि अशुद्धतानो
कर्ता–भोक्ता नथी. तेनुं उपादान शुद्धपणे परिणमी रह्युं छे. शुद्ध उपादानरूपे परिणमतो ते
जीव शुद्धभावनो ज कर्ता–भोक्ता छे, ते अशुद्धतानो कर्ता–भोक्ता नथी. आवी शुद्धतारूपे
परिणमेलो आत्मा ते शुद्धआत्मा छे.
अरे जीव! तारी चैतन्यजात केवी छे? तारी चैतन्यआंख केवी छे. तेनी आ वात छे.
जगतनुं प्रकाशक पण जगतथी जुदुं एवुं ज्ञाननेत्र ते तारुं स्वरूप छे. आवा ज्ञानस्वरूपनी
श्रद्धा ने अनुभव करवो ते करवानुं छे. परभावनुं कर्तृत्व–भोक्तृत्व ज्ञानने सोंपवुं ते तो
बोजो छे. कोई आंख पासे रेती उपडाववा मांगे तो ते आंखनो नाश करवा जेवुं छे; तेम
जडनुं ने पुण्य–पापनुं कार्य ज्ञान पासे कराववा मागे छे तेने ज्ञाननी श्रद्धा ज नथी. धर्मी तो
विकार वगरना ज्ञानमात्रभावे पोताने अनुभवे छे. शुद्धद्रष्टिनी जेम शुद्धज्ञान (क्षायिकज्ञान)
पण रागादिनुं अकर्ता–अभोक्ता छे. क्षायिकज्ञान कहेतां तेरमा गुणस्थाननी ज वात न
समजवी; चोथा गुणस्थानथी पण जे शुद्ध ज्ञानपरिणमन थयुं छे ते पण क्षायिकज्ञाननी जेम
ज रागादिनुं अकर्ता ने अभोक्ता छे. ज्ञाननो स्वभाव ज रागादिनो अकर्ता–अभोक्ता छे.
अहो! मिथ्यात्व छूटतां जीव सिद्धसद्रश छे. जेम केवळज्ञान थतां रागादिनुं कर्ता–भोक्तापणुं
जरापण रहेतुं नथी तेम अहीं पण ज्ञाननो एवो ज स्वभाव छे–एम धर्मीजीव जाणे छे.
अहो! जेम केवळज्ञानमां रागनुं के परनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी, तेम ज्ञानना कोई
अंशमां परनुं के रागनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी. आत्मा आवा ज्ञानस्वभावथी भरपूर छे.
ज्ञानमां एवुं कोई बळ नथी के परने करी द्ये. केवळज्ञान थतां ज्ञाननुं जोर घणुं वधी गयुं तेथी
ज्ञान परमां कांई करे–एम बनतुं नथी. भाई, तारुं ज्ञान तो पोताना आनंदने भोगवनारुं
छे, ए सिवाय परने तो ते करतुं–भोगवतुं नथी. ज्ञाननी अनंती ताकात प्रगटी–पण ते
ताकात शुं करे? पोताना पूरा आनंदने ते वेदे, पण परमां कांई करे नहि. भाई! अनंत
वीर्यसहित एवुं जे क्षायिकज्ञान तेमां पण परने करवा–भोगववानी ताकात नथी तो तारामां
ए वात क्यांथी लाव्यो? तने क्षायिकज्ञाननी खबर नथी एटले तारा ज्ञानस्वभावनीये तने
खबर नथी.
आवा ज्ञानस्वभावने ओळखीने जे शुद्ध ज्ञानपरिणतिरूपे परिणम्यो ते जीव शुं करे
छे? –के बंधमोक्षने तेमज उदय–निर्जराने जाणे ज छे. कर्मनी बंध–मोक्ष के