
जाय तेने मात्र जाणे ज छे, तेम सर्वज्ञस्वभावनी द्रष्टिवाळो धर्मीजीव पण कर्मना बंध–मोक्षने
के उदय–निर्जराने जाणे ज छे. रागादिने पण ते जाणे ज छे, पण तेनुं ज्ञान ते अशुद्धता साथे
भळी जतुं नथी, जुदुं ज रहे छे.
ने ते पुण्यना फळने हुं भोगवुं छुं–एम धर्मी मानता नथी, हुं तो ज्ञान ज छुं–एम धर्मी
पोताने ज्ञानरूपे ज अनुभवे छे.
भिन्न ज्ञानपणे ज पोताने अनुभवे छे, पोताना आत्मिक आनंदने ज अनुभवे छे. जे
शुभाशुभ छे तेना वेदनने पोताना ज्ञानथी भिन्न जाणे छे. जेम सूर्य जगतना अनेक
शुभाशुभ पदार्थोने राग–द्वेष वगर प्रकाशे ज छे, पण तेने करतो के भोगवतो नथी, एवो ज
एनो प्रकाशकस्वभाव छे; तेम ज्ञानसूर्य आत्मा पण पोताना चैतन्यकिरणो वडे
शुभाशुभकर्मना उदयने के निर्जराने, बंधने के मोक्षने जाणे ज छे, पण तेने करवा–
भोगववानो तेनो स्वभाव नथी. ज्ञान तो ज्ञानपणे ज रहे छे. ज्ञाननुं ज्ञानपणुं पोताथी ज
छे. कर्मनी जे अवस्था थाय तेने ते जाणे छे. आवो ज्ञानस्वभावी आत्मा छे–तेने जाणीने ते
ज्ञानस्वभावनी भावना करवी एवो उपदेश छे.
बंध–मोक्ष के उदय–निर्जरारूप पुद्गलकर्म ते अजीवतत्त्व छे. ए बंनेनी भिन्नता
आनंदनुं महा सुख माणे छे (मांही पड्या ते महा सुख माणे.)
अस्तित्ववाळुं छे, ध्रुवद्रष्टिथी जोतां वस्तु ध्रुव छे, ते ध्रुवद्रष्टिमां परिणमन देखातुं नथी;
परिणमन ते पर्यायनयनो विषय छे.