Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : २१
उदय–निर्जरारूप अवस्थाने ज्ञान जाणे ज छे. जेम केवळज्ञान साता वगेरेना परमाणु आवे के
जाय तेने मात्र जाणे ज छे, तेम सर्वज्ञस्वभावनी द्रष्टिवाळो धर्मीजीव पण कर्मना बंध–मोक्षने
के उदय–निर्जराने जाणे ज छे. रागादिने पण ते जाणे ज छे, पण तेनुं ज्ञान ते अशुद्धता साथे
भळी जतुं नथी, जुदुं ज रहे छे.
द्रव्यस्वभावमां तो परनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी, अने ते स्वभावनी द्रष्टिरूप जे
निर्मळपरिणति थई तेमां पण परनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी. में राग करीने पुण्यकर्म बांध्या,
ने ते पुण्यना फळने हुं भोगवुं छुं–एम धर्मी मानता नथी, हुं तो ज्ञान ज छुं–एम धर्मी
पोताने ज्ञानरूपे ज अनुभवे छे.
वळी कोई अशुभकर्मनो उदय आवी पडे (–जेमके श्रेणिकने नरकमां पापकर्मनो उदय
छे–) त्यां पण धर्मीजीव ते अशुभकर्मना फळरूपे पोताने नथी अनुभवता, ते तो तेनाथी
भिन्न ज्ञानपणे ज पोताने अनुभवे छे, पोताना आत्मिक आनंदने ज अनुभवे छे. जे
शुभाशुभ छे तेना वेदनने पोताना ज्ञानथी भिन्न जाणे छे. जेम सूर्य जगतना अनेक
शुभाशुभ पदार्थोने राग–द्वेष वगर प्रकाशे ज छे, पण तेने करतो के भोगवतो नथी, एवो ज
एनो प्रकाशकस्वभाव छे; तेम ज्ञानसूर्य आत्मा पण पोताना चैतन्यकिरणो वडे
शुभाशुभकर्मना उदयने के निर्जराने, बंधने के मोक्षने जाणे ज छे, पण तेने करवा–
भोगववानो तेनो स्वभाव नथी. ज्ञान तो ज्ञानपणे ज रहे छे. ज्ञाननुं ज्ञानपणुं पोताथी ज
छे. कर्मनी जे अवस्था थाय तेने ते जाणे छे. आवो ज्ञानस्वभावी आत्मा छे–तेने जाणीने ते
ज्ञानस्वभावनी भावना करवी एवो उपदेश छे.
ज्ञानस्वभावी आत्मा ते जीवतत्त्व छे.
बंध–मोक्ष के उदय–निर्जरारूप पुद्गलकर्म ते अजीवतत्त्व छे. ए बंनेनी भिन्नता
छे. अहो, आवी भिन्नतानुं भान करीने जे ज्ञानस्वभावमां ऊतर्या ते अतीन्द्रिय
आनंदनुं महा सुख माणे छे (मांही पड्या ते महा सुख माणे.)
[फागण सुद ११]
सम्यग्दर्शनना विषयरूप शुद्ध आत्मा केवो छे? तेनुं आ वर्णन छे. ते आत्मा कर्मना
बंध–मोक्षनो के उदय–निर्जरानो कर्ता–भोक्ता नथी.
“द्रव्यात्मलाभ” ते पारिणामिकभावनुं लक्षण कह्युं छे; एटले द्रव्यनुं निजस्वरूपे
अस्तित्व ते द्रव्य–आत्मलाभ छे; पारिणामिकभावे द्रव्य सदा निजस्वरूपे एकरूप
अस्तित्ववाळुं छे, ध्रुवद्रष्टिथी जोतां वस्तु ध्रुव छे, ते ध्रुवद्रष्टिमां परिणमन देखातुं नथी;
परिणमन ते पर्यायनयनो विषय छे.