२२ : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
द्रव्य–पर्याय बंनेने भावश्रुतज्ञानप्रमाण जाणे छे. स्वसंवेदनरूप भावश्रुतज्ञानमां
द्रव्य–पर्याय जेम छे तेम जणाय छे. द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक ए बंने ते भावश्रुतना अंशो
छे– अवयवो छे–नय छे.
ध्रुवभाव छे ते पर्यायने करतो नथी; पर्यायनो कर्ता पर्यायधर्म छे. शुद्ध–द्रव्यार्थिकनय
केवो छे? के सर्वविशुद्ध एवा परम पारिणामिक परमभावनो ग्राहक छे, शुद्ध उपादानभूत छे.
रागादिनुं कर्तृत्व–भोक्तृत्व शुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी जीवमां नथी. निर्मळपर्याय के मलिनपर्याय ते
द्रव्यार्थिकनयमां न आवे. द्रव्यार्थिकनयमां तो एकलुं द्रव्य ज आवे; ए अपेक्षाए
द्रव्यार्थिकनयमां तो जीवने परिणामथी शून्य कहेवाय छे. शुद्धपर्याय ते वखते छे खरी पण
द्रव्यद्रष्टिमां ते आवती नथी.
मोक्षमार्ग के मोक्ष ते निर्मळपरिणाम छे, ते द्रव्यरूप नथी. द्रव्यने देखनारी द्रष्टिमां
पर्याय न आवे. पर्याय ते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे. आवा द्रव्य–पर्यायरूप वस्तु छे–एम
आगळ कहेशे. परस्पर सापेक्ष एवुं द्रव्यपर्यायद्वय ते आत्मपदार्थ छे.
बंध ने मोक्षनां कारण ते बंने पर्याय छे; द्रव्यरूप एवो पारिणामिक परमभाव तो
बंध–मोक्षनुं कारण नथी. पारिणामिकभाव पोते सर्वथा पर्यायरूप थई जाय तो तो पर्यायनी
साथे ते पण नाश पामी जाय.
ज्ञानीनो अनादर, देव–गुरुनी निंदा वगेरे कारणोथी तीव्र दर्शनमोह बंधाय छे. आवा
जे बंधकारणो ते शुद्धजीवमां नथी. आवा शुद्धजीवने सम्यग्द्रष्टि देखे छे. तेथी अहीं कह्युं के
‘सर्वविशुद्ध पारिणामिक परमभावग्राहक शुद्धउपादानभूत शुद्धद्रव्यार्थिकनये जीव कर्तृत्व–
भोक्तृत्वथी तथा बंध–मोक्षनां कारण ने परिणामथी शून्य छे.
आठ कर्म के तेना बंधनना कारणरूप अशुद्ध परिणामो ते शुद्ध द्रव्यद्रष्टिथी जीवमां
नथी. अने स्वसन्मुख थईने सम्यग्दर्शनादि मोक्षकारणरूपे परिणमे छे ते पर्याय पण
शुद्धद्रव्यद्रष्टिमां आवती नथी, ते तो पर्यायद्रष्टिनो विषय छे. बंने नयोना विषय भिन्नभिन्न
छे. परस्पर सापेक्ष आवा द्रव्य–पर्यायनुं जोडकुं ते आत्मवस्तु छे.
मोक्षनुं कारण के मोक्ष, बंधनुं कारण के बंध, ए बधी अवस्थाओ वखते ध्रुवद्रव्य तो
एकरूप एवुं ने एवुं छे; पर्याय अनित्य छे, द्रव्य–नित्य छे, –ए बंनेनी सापेक्षतावडे वस्तु
सिद्ध थाय छे, एटले के बे नयोनो विरोध रहेतो नथी.
जुओ, आ आत्मवस्तुने जाणवानी रीत.
आत्माना पांच भावो बतावीने तेमां क्या भावो बंध–मोक्षना कारणरूप छे ए वात
पछी समजावशे. एक क्षणिक अंशमां बंधन हतुं ने टळ्युं तेथी आखो पुरुष तो ते बंध के
मोक्ष जेटलो नथी–ए वात द्रव्यसंग्रहमां पण बतावी छे.