चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : २३
अहीं द्रव्यद्रष्थिी जे शुद्धद्रव्य छे तेने देखवुं–जाणवुं–अनुभववुं ते मोक्षमार्ग छे.
शुद्धद्रव्यद्रष्टिमां बंध–मोक्षपर्याय न आवे; आ अपेक्षाए शुद्धद्रव्यार्थिकनये जीवने परिणामथी
शून्य कह्यो. पण जीव सर्वथा परिणामथी शून्य नथी. द्रव्य ने पर्याय कथंचित् भिन्न छे, सर्वथा
भिन्न नथी.
द्रव्य शुं, पर्याय शुं, ध्यान शुं, ध्येय शुं तेने जाण्या वगर केटलाक कहे छे के शून्यनुं
ध्यान करवुं. पण भाई! कोनुं ध्यान करीश? सर्वथा शून्यनुं ध्यान होई न शके. सत्नुं ध्यान
होय. सत् केवुं छे तेनी ओळखाण वगर ध्यान न होय.
जयसेनाचार्यरचित आ टीकानुं नाम “तात्पर्यवृत्ति’ छे; तेमां शास्त्रनुं तात्पर्य शुं?
ज्ञाननुं तात्पर्य शुं? ते बतावे छे. आत्मानो सारभूत स्वभाव शुं–के जेने लक्षमां लेतां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंद थाय. एवा तात्पर्यभूत साररूप आत्मस्वरूपनुं आ वर्णन छे.
कदाच झीणुं पडे तोपण, आ आत्माना हित माटेनी प्रयोजनभूत वात छे–एम लक्षमां
महिमा लावी प्रयत्न करवो, तो जरूर समजाय तेवुं छे. जीवमां तो केवळज्ञान लेवानी ताकात
छे, तो पोतानी वात एने न समजाय ए केम बने? पण ते माटे अंतरमां ऊंडी लगनी ने
आत्मानी दरकार जोईए.
आत्मानो कायम टकतो स्वभाव शुं ने तेनी निर्मळ पर्याय शुं? विकार शुं ने पर शुं?
–ए बधा प्रकारोने जेम छे तेम ओळखीने, तेमांथी पोताना हितनुं कारण कोण छे–एटले के
मोक्षनुं कारण कोण छे? तेनी आ वात छे. आत्माने समजवा माटे ने अनुभवमां लेवा माटे
तेनी खुमारी चडवी जोईए. जेम बंधाणीने अफीण वगेरेनी खुमारी चडे छे तेम आत्माना
हित माटे तेना अनुभवनी एवी खुमारी चडे के दुनियानो रस ऊडी जाय.–
लागी लगन हमारी जिनराज लागी लगन हमारी;
काहुके कहे कबहुं न छूटे लोकलाज सब डारी;
जैसे अमली अमल करत समे लाग रही खुमारी...
लागी लगन हमारी...
भगवान आत्मानी जेने लगनी लागी तेने तेनी खुमारी ऊतरे नहि, दुनिया शुं
कहेशे ते जोवा ते रोकाय नहि. पोताना आनंदकंद स्वभावमां द्रष्टि करतां जे सम्यग्दर्शनादि
निर्मळपर्याय जन्मी ते हवे पाछी फरे नहि. ...ते तो केवळज्ञान लीधे ज छूटको.
जुओ भाई, लोकोने परदेशनी विद्याना भणतरनो महिमा आवे छे, पण ए तो
नास्तिक छे. आत्माना हितनी साची अध्यात्मविद्या आपणा भारतदेशमां ज छे, एनो ज
साचो महिमा छे. आत्मानी आवी वात काने पडवी पण बहु मोंघी छे.