Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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२४ : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
मोंघी छे पण मधुरी मीठी अमृत जेवी वात छे. –‘अमृत झर्या रे प्रभु! पंचमकाळमां.’
–आ समजतां आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनां अमृत झरे छे.
आत्माने शुद्धद्रव्यार्थिकनयथी जोतां ते परम पारिणामिकभावरूप देखाय छे. नय ते
भावश्रुतज्ञाननो अंश छे. ते नय उपयोगात्मक छे, एटले शुं? के शुद्धद्रव्यने लक्षमां लईने
तेेने ध्येय करनार शुद्धनयनो उपयोग ते शुद्धद्रव्य तरफ ढळेलो छे, अने ते पर्याय छे.
त्रिकाळद्रव्यनो निर्णय त्रिकाळ वडे न थाय, त्रिकाळनो निर्णय वर्तमान वडे थाय छे.
अनंत गुणो सहज पारिणामिकभावे जेमां वर्ते छे एवा शुद्ध जीवने जोनारी पर्याय
ते शुद्धनय छे. प्रगटेला भावश्रुतज्ञाननो जे उपयोग वर्ते छे ते नय छे. ध्रुव वस्तुनुं लक्ष तो
पलटतुं ज्ञान करे छे, कंई ध्रुव पोते ध्रुवनुं लक्ष नथी करतुं; अंदरना शुद्धनयना दरवाजामां
पेसीने मोक्षनो अनुभव करवानी आ वात छे.
शुद्धद्रव्य त्रिकाळ ध्रुव सत् छे; पण ‘छे’ तेनी हयातीनो निर्णय कोणे कर्यो? ध्रुव तो
कार्यरूप नथी, कायरूप तो पर्याय छे, ने ते पर्याय उपशमादि भावरूप छे. ध्रुवस्वभाव ते
पारिणामिक परमभाव छे. द्रव्यात्मलाभरूप जे पारिणामिकभाव छे तेनो कोई हेतु नथी. –
आवा द्रव्य तरफनो जे ज्ञाननो वेपार एटले के अंतर्मुख उपयोग ते शुद्ध द्रव्यार्थिक नय छे.
‘नय’ ए भावश्रुतज्ञाननो वेपार छे.
कर्तापणुं–भोक्तापणुं ते पर्यायनुं कार्य छे, द्रव्यद्रष्टिमां ते कर्तापणुं–भोक्तापणुं नथी,
आत्मामां परनुं तो कर्ता–भोक्तापणुं नथी, रागनुंय कर्ता–भोक्तापणुं आत्माना स्वभावमां
नथी, ने निर्मळपरिणामनुं जे कर्ता–भोक्तापणुं पर्यायमां छे ते पण शुद्ध द्रव्यार्थिकनयनी
द्रष्टिमां आवतुं नथी. केमके बंने नयना बे विषयो छे. ते परस्पर सापेक्ष छे. शुद्धद्रव्यने
देखनार नय ते तो निर्मळपर्याय छे. तेमां आनंदनुं कर्ता–भोक्तापणुं छे. बंध ने बंधनुं कारण,
मोक्ष ने मोक्षनुं कारण–ए बधुं पर्यायमां छे, द्रव्यमां नथी, ए अपेक्षाए जीवने तेनाथी शून्य
कह्यो छे. जीवमां बंधपणुं के मोक्षपणुं ए त्रिकाळी नथी पण क्षणिक पर्यायरूप छे.
शुद्धनुं लक्ष करनार निर्मळ परिणाम छे ते कांई शून्य नथी, ते तो वीतरागी शांतिनी
अस्तिरूप छे, तेनो कांई अनुभवमां अभाव नथी थतो. विकल्पनो अभाव छे, खेदनो
अभाव छे, पण निर्मळपर्याय छे तेमां आनंदनो अभाव नथी. त्रिकाळनुं लक्ष करनार
वर्तमान पर्याय छे, तेनो अनुभव छे. अनुभवनी पर्याय छे ते त्रिकाळी शुद्धस्वभाव तरफ
ढळी छे; शुद्र द्रव्यना लक्षे ते परिणाम थया छे, ते परिणाम शुद्ध द्रव्यनी द्रष्टिमां नथी, ए
अपेक्षाए शुद्धजीवने बंध–मोक्षना परिणामथी शून्य कह्यो; अने आवा शुद्धस्वभावना लक्षे जे
निर्मळपर्याय प्रगटी तेमां विकल्पनी–खेदनी शून्यता छे. शुद्धनयवडे आवा शुद्धजीवनो
अनुभव ते मोक्षमार्ग छे.
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