चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : २५
पांच भाव संबंधी विशेष खुलासो
औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक औदयिक अने पारिणामिक–ए पांच भावो जीवना
छे, तेमांथी कयो भाव मोक्षनुं कारण छे ते विचारवामां आवे छे :–
आत्मद्रव्य केवुं छे, तेनी भूलदशा केवी छे ने भूल टळतां आनंददशा थाय ते केवी छे?
ए बधुं पांच भावोमां आवी जाय छे.
पांच भावमां अहीं पहेलो उपशमभाव लीधो छे. अनादिना अज्ञानी जीवने सौथी
पहेली धर्मदशा ने अपूर्व शांति उपशमभाव वडे शरू थाय छे. मिथ्यात्वरूपी झेरी सर्प
उपशमभावरूपी अमृत वडे शांत थाय छे. मोक्षना पंथे जता जीवने सौथी पहेलां
उपशमसम्यकत्व थाय छे. चैतन्यने पहेलवहेलो पकडीने तेनी अनुभूति करतां मिथ्यात्वनो
उपशम थई जाय छे. आ उपशमभावमां उदयनो अभाव छे; ने आ उपशमभाव ते
पर्यायरूप छे, मोक्षना कारणरूप छे. उपशमभावमां चैतन्यनी शांति छे. ‘उपशमरस वरसे रे
प्रभु तारा नयनमां.....’ चैतन्यना उपशमरसनो अनुभव सौथी पहेलां उपशमभाव वडे
थाय छे.
मोक्षमार्गमां क्षायोपशमिकभाव पण छे. अहीं अनादिथी अज्ञानदशामां पण
ज्ञानादिनो जे क्षयोपशमभाव छे ते न लेवो; पण उपशमभावपूर्वक सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रादिमां क्षयोपशमभावरूप जे पर्याय थाय छे ते मोक्षमार्गरूप छे. मोक्षमार्गी जीवने
आवा क्षायोपशमिकभावरूप निर्मळपर्याय पण आव्या विना रहेती नथी. आ भाव पण
पर्यायरूप छे.
क्षायिकभाव ते सर्वथा कर्मना क्षयरूप संपूर्ण शुद्धदशा छे. ते पण द्रव्यरूप नथी पण
निर्मळ पर्यायरूप छे. आ भाव मोक्षना कारणरूप तेम ज मोक्षरूप छे.
औदयिकभाव ते कर्मना उदय सहित एवा मलिन परिणाम छे. राग–द्वेष–
मिथ्यात्वादिभावो ते औदयिक छे.
पांचमो भाव शुद्धपारिणामिकभाव छे ते द्रव्यरूप छे ने चार भावो पर्यायरूप छे.
आम परस्पर सापेक्ष एवा द्रव्य–पर्यायद्वय ते आत्मपदार्थ छे. पर्यायने द्रव्यनी
अपेक्षा छे, ने द्रव्यने पर्यायनी अपेक्षा छे. आम परस्पर सापेक्ष द्रव्य–पर्याय बंनेरूप
आत्मवस्तु छे.
पहेलां द्रव्यद्रष्टिमां जीवने परिणामथी शून्य कह्यो ने अहीं पर्यायसापेक्ष कह्यो. –एवुं
ज वस्तुस्वरूप छे. द्रव्य–पर्याय बंने वगर जीववस्तु सिद्ध थाय नहि. द्रव्य अने पर्यायनी
जोडी ते आत्मपदार्थ छे. द्रव्यरूप जीव, पर्यायरूप जीव–ए बंने एकरूप थईने जीववस्तु छे.