चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : २७
जीवने नथी कंई जीवस्थानो; मार्गणास्थानो पण शुद्ध जीवने नथी. गति, ईंद्रिय वगेरे
१४ मार्गणावडे जीवने ओळखाववो ते व्यवहारजीव छे; परमार्थभूत शुद्धजीवस्वभाव
मार्गणाथी पार छे.
शुद्धनयथी जोतां बधाय जीवो अशुद्धप्राणोथी रहित छे; ने सिद्धभगवंतोने तो
पर्यायमां पण अशुद्धभावो रह्या नथी. संसारी जीवोने पर्यायमां अशुद्धभावो छे पण
शुद्धद्रव्यनी द्रष्टिथी जोतां तेनामां अशुद्धभावोनो अभाव छे. बधाय जीवो परमपारिणामिक
शुद्धभावरूप छे.
त्रण प्रकारना जे अशुद्ध पारिणामिकभाव कह्या, तेमां भव्यत्वपारिणामिकभावने तो
यथासंभव सम्यकत्वादि जीवगुणोनुं घातक देशघाती अने सर्वघातीकर्म पर्यायार्थिकनये ढांके छे
एम जाणवुं. सम्यकत्वादिरूप मोक्षमार्ग प्रगटे त्यारे भव्यत्वशक्ति व्यक्त थई कहेवाय छे.
मोक्षदशा थई गया पछी मोक्षनी योग्यतारूप व्यवहार रहेतो नथी.
अनंत चैतन्यशक्तिथी भरेलो आत्मा चमत्कारिक वस्तु छे–अलौकिक धर्मो आत्मामां
छे, पण जीवोने तेनी खबर नथी. श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–चैतन्यनो गुप्त चमत्कार
सृष्टिना लक्षमां नथी. भाई! तारी परमशक्ति संतो तने ओळखावे छे.
परम पारिणामिकभावरूप जे परमात्मस्वभाव तेनी सन्मुख परिणमतां जे शुद्धभाव
प्रगटे छे तेने ‘शुद्धात्माभिमुख परिणाम’ अथवा शुद्धोपयोग कहेवाय छे; तेने मोक्षमार्ग
कहेवाय छे; ते परिणाम औपशमिक–क्षायोपशमिक के क्षायिकभावरूप छे.
पांच भावमां पारिणामिकभावने तो बंध–मोक्ष रहित कह्यो, बंध–मोक्षनी क्रिया तेमां
न होवाथी तेने निष्क्रिय पण कहेवाय.
बाकीना चार भावो पर्यायरूप छे; औपशमिकादि भावो मोक्षना कारणरूप छे;
औदयिकभाव ते बंधना कारणरूप छे. आम पांच भावोने जाणीने शुद्धपारिणामिक–भावनी
भावना करवा जेवी छे. ‘भावना’ ते मोक्षमार्ग पर्याय छे.
ध्यान कहो, परमात्मतत्त्वनी भावना कहो, राग वगरनो भाव कहो, शुद्ध उपादान
कहो, जाणवारूप भाव कहो, औपशमिक–क्षायोपशमिक–क्षायिकभाव कहो, शुद्धात्म–अभिमुख
परिणाम कहो, शुद्धोपयोग कहो, धर्म कहो, रत्नत्रय कहो–ए बधां मोक्षमार्गनां नामो छे.
आमां क्यांय राग नथी आवतो; पराश्रय नथी आवतो. स्वाधीन थईने स्वसन्मुखपणे
निजनिधानने प्रगट करे एवो आत्मा छे.
निजाधीन निधानथी भरेलो आत्मा, तेने द्रष्टिमां लेतां निधान खूले छे...ने
मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
मोक्षमार्ग छे ते शुद्धात्मानी अभिमुख परिणाम छे, ने शुभाशुभरागथी ते विमुख छे.
जे शुभराग छे ते निजात्मसन्मुख परिणाम नथी पण विमुख छे. हजी तो