२८ : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
आत्माथी विमुख एवा रागने जे मोक्षमार्ग माने ते परसन्मुखता छोडीने स्वसन्मुख कयारे
थाय? ने तेने मोक्षमार्ग कयांथी प्रगटे?
अहीं तो कहे छे के जे मोक्षमार्ग छे ते पर्यायरूप छे, भावनारूप छे. ते पर्याय,
शुद्धपारिणामिकभावलक्षण शुद्धात्मद्रव्यथी कथंचित् भिन्न छे. सर्वथा भिन्न नथी कह्युं पण
कथंचित् भिन्न कह्युं छे, केमके ते पर्यायरूपे आत्मानुं परिणमन छे. पण ते भावनारूप
होवाथी, एटले के पर्यायरूप होवाथी, पर्यायार्थिकनयनो विषय छे, द्रव्यार्थिकनयनो विषय ते
नथी. आ अपेक्षाए शुद्धात्मद्रव्यथी ते परिणामने ‘कथंचित्’ भिन्न कह्या छे. द्रव्य अने
पर्यायने एकबीजा साथे कांई संबंध नथी–एम नथी, द्रव्य अने पर्यायने एकबीजा साथे
संबंध छे, पण पर्याय जेटलुं ज द्रव्य नथी; जो पर्याय जेटलुं ज द्रव्य होय तो पर्यायनो नाश
थतां द्रव्यनोय नाश थई जाय. वस्तु द्रव्य–पर्याय बंने रूप छे. तेमां ध्रुवद्रव्य ते
द्रव्यार्थिकनयनो विषय छे ने पर्याय ते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे.
वस्तु द्रव्य–पर्यायस्वरूप छे; तेना स्वीकार वगर साचो तत्त्वनिर्णय के सम्यग्दर्शन
थाय नहि, तेमज ध्रुवशक्तिमां सुख न होय तो सुखनुं परिणमन क्यांथी थाय? आम
उत्पाद–व्यय ने ध्रुव, अथवा द्रव्य–पर्याय ते–रूप वस्तु छे.
ध्रुव वगर एकला उत्पाद–व्यय न होई शके; ने उत्पाद–व्यय वगर एकलुं ध्रुव कार्य
करी शके नहि. धु्रव तो पारिणामिकभावे त्रिकाळ स्वभाव छे; ने पर्यायमां चार भावो संभवे
छे; तेमांथी औपशमिकादि त्रण भावो मोक्षनुं कारण छे. स्वशक्तिनी प्रतीतरूपे परिणमतां
उपशमसम्यकत्वादि प्रगटे छे, ते पर्यायमां काळलब्धि, पुरुषार्थ वगेरे आवी जाय छे.
पर्याय पोते एकाग्र थईने पोताना परमानंदस्वरूपने भेटे छे; तेने आगमभाषाथी
औपशमिक–क्षायोपशमिक–क्षायिकभाव कहेवाय छे : अध्यात्मशैलिथी तेने ध्यान कहो,
शुद्धात्मसन्मुख परिणाम कहो के शुद्धोपयोग वगेरे अनेक नामोथी कहेवाय छे. औपशमिकादि
त्रणे भावो शुद्धात्मानी अभिमुख छे. एकला पर सन्मुख अज्ञानीना क्षयोपशमभावनी वात
अहीं मोक्षमार्गमां नथी. मोक्षमार्गअवस्थाना ६प जेटला नाम तो द्रव्यसंग्रहमां कह्या छे;
बीजा पण अनेक नामोथी ते ओळखाय छे.
जे पर्यायद्वारा वस्तुमां उपयोगनुं जोडाण थाय छे ते उपशमादि त्रण भावरूप छे, ने
ते मोक्षमार्ग छे.
हवे आ जे मोक्षमार्गरूप पर्याय छे ते शुद्धात्मद्रव्यथी सर्वथा जुदी नथी, पण कथंचित्
भिन्न छे. केमके शुद्धपारिणामिकभावरूप द्रव्य तो अविनाशी छे ने पर्याय तो विनाशीक छे;
जो ते बंने सर्वथा एक होय तो पर्यायनो नाश थतां द्रव्यनो पण नाश थई जाय. अंश ते ज
आखो अंशी नथी. एक पर्याय ते आखुं द्रव्य नथी, ते अपेक्षाए द्रव्य–पर्यायने कथंचित्
भिन्न कह्या.