
ओळखे तो साचो निर्णय कहेवाय.
त्रण निर्मळभावरूप छे, ते मोक्षमार्गरूप छे; तेमां विकल्प नथी, राग नथी. शुद्धस्वभावमा
जेटली एकाग्रता तेटली ‘भावना’ छे. आ भावना–पर्याय पलटीने पूर्ण शुद्ध मोक्षदशा प्रगटे
छे, पण शुद्धद्रव्य पारिणामिकभावे छे ते कदी नाश थतुं नथी, ते अविनाशी एकरूप छे. ते
द्रव्य पोते मोक्षना कारणरूप के मोक्षरूप थतुं नथी, मोक्ष अने मोक्षनुं कारण ए बंने तो
पर्यायमां छे. द्रव्यस्वभाव छे ते तो शक्तिपणे मोक्षस्वरूप ज छे; तेनी सन्मुखता वडे
पर्यायमां व्यक्तिरूप मोक्ष थाय छे, तेनी आ वात छे. व्यक्तिरूप मोक्ष ते संपूर्णक्षायिकभाव
छे, ने शुद्धात्मसन्मुख एवा औपशमिकादि त्रण भावो मोक्षना कारणरूप छे.
शुद्धउपयोगवडे पकडाय तेवुं छे.
अनादिथी विकारीपणे पलटी रह्यो छे; परमात्म स्वरूपनुं ध्यान करतां अपूर्व निर्मळदशापणे
पलटे छे. “आत्मा द्रव्ये नित्य छे, पर्याये पलटाय.” ध्रुव टकीने क्षणेक्षणे पर्याय बदलाय एवो
वस्तुस्वभाव छे. पर्यायनी मीट धु्रवस्वभाव चिदानंदभगवान उपर छे. जेणे ध्यान करवुं छे
तेणे कोनुं ध्यान करवुं ते वात छे.
मोक्षमार्ग एटले के मोक्षनुं कारण पांचमांथी कया भाव छे–ते अहीं बताव्युं छे. कयो भाव
मोक्षनुं कारण नक्क्ी थयो ते कहे छे–