Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : २९
जो अवस्थाने न माने तो, समजवानुं के मोक्षमार्ग प्रगट करवानुं रहेतुं नथी. पर्याय
आत्मामां सर्वथा छे ज नहि–एम नथी, द्रव्य–पर्यायरूप आत्मवस्तु छे, आवा आत्माने
ओळखे तो साचो निर्णय कहेवाय.
औपशमिकादि भावो छे ते भावनारूप छे–पर्यायरूप छे; अने
परमपारिणामिकभावरूप द्रव्य ते भावनारूप नथी, पर्यायरूप नथी. आ जे ‘भावना’ कही ते
त्रण निर्मळभावरूप छे, ते मोक्षमार्गरूप छे; तेमां विकल्प नथी, राग नथी. शुद्धस्वभावमा
जेटली एकाग्रता तेटली ‘भावना’ छे. आ भावना–पर्याय पलटीने पूर्ण शुद्ध मोक्षदशा प्रगटे
छे, पण शुद्धद्रव्य पारिणामिकभावे छे ते कदी नाश थतुं नथी, ते अविनाशी एकरूप छे. ते
द्रव्य पोते मोक्षना कारणरूप के मोक्षरूप थतुं नथी, मोक्ष अने मोक्षनुं कारण ए बंने तो
पर्यायमां छे. द्रव्यस्वभाव छे ते तो शक्तिपणे मोक्षस्वरूप ज छे; तेनी सन्मुखता वडे
पर्यायमां व्यक्तिरूप मोक्ष थाय छे, तेनी आ वात छे. व्यक्तिरूप मोक्ष ते संपूर्णक्षायिकभाव
छे, ने शुद्धात्मसन्मुख एवा औपशमिकादि त्रण भावो मोक्षना कारणरूप छे.
ज्ञानीना अंतरना घर ऊंडा छे. वस्तुनुं स्वरूप ज एवुं ऊंडुं गहन छे के बहारनी
स्थूळता वडे ते पकडाय तेवुं नथी, शुभ विकल्पो वडे पण पकडाय तेवुं नथी. अंर्तमुख
शुद्धउपयोगवडे पकडाय तेवुं छे.
ध्येयरूप जे शुद्धआत्मा, तेनुं ध्यान करनार पर्याय छे; ते पर्याय अपूर्व छे, पण ते
कायम टकती नथी, बदलती छे. पलटवानो स्वभाव अनादि–अनंत छे, पण अज्ञानने लीधे
अनादिथी विकारीपणे पलटी रह्यो छे; परमात्म स्वरूपनुं ध्यान करतां अपूर्व निर्मळदशापणे
पलटे छे. “आत्मा द्रव्ये नित्य छे, पर्याये पलटाय.” ध्रुव टकीने क्षणेक्षणे पर्याय बदलाय एवो
वस्तुस्वभाव छे. पर्यायनी मीट धु्रवस्वभाव चिदानंदभगवान उपर छे. जेणे ध्यान करवुं छे
तेणे कोनुं ध्यान करवुं ते वात छे.
जे सत् होय तेनुं ध्यान थाय. सत्वस्तु शुं तेनी ओळखाण वगर ध्यान करवा मांगे
तो तो तेनुं शून्य जेवुं थई जशे.
भावनारूप भावश्रुतज्ञान पर्याय छे ते अंतर्मुख थतां तेमां वस्तु यथार्थ परिणमी
जाय छे, तेमां अपूर्व आनंद ने अपूर्व शांति छे. आनुं नाम ध्यान छे ने आ मोक्षमार्ग छे.
मोक्षमार्ग एटले के मोक्षनुं कारण पांचमांथी कया भाव छे–ते अहीं बताव्युं छे. कयो भाव
मोक्षनुं कारण नक्क्ी थयो ते कहे छे–
“शुद्धपारिणामिकभावनी भावनारूप छे औपशमिकादि त्रण भावो छे ते समस्त
रागादि रहित शुद्ध उपादानकारणभूत होवाथी मोक्षनां कारण छे–एम नक्क्ी थयुं.”