३० : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
‘भावना’ ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप छे; ते राग वगरनी छे, विकल्प वगरनी
छे, केमके राग अने विकल्प तो उदयभाव छे, ने आ शुद्धात्मभावना तो औपशमिकादि
निर्मळभावरूप छे. –ते मोक्षमार्ग छे. शुभराग तो उदयभाव छे, ते मोक्षनुं कारण नथी, ते तो
बंधनुं कारण छे. भावनानो वीतरागभाव तो अमृतनुं झरणुं छे, ने राग तो झेरभाव छे.
आ उपशमिकादिभाव चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे. शुद्धात्मानी भावनारूप जे मोक्षमार्ग
तेमां रागनुं जराय आलंबन नथी, ते तो परमात्मस्वरूपने ज भावे छे. आवो भाव ते
मोक्षनुं कारण छे. राग मोक्षनुं कारण नथी, तेमज पारिणामिकभाव मोक्षनुं कारण नथी, केमके
कारण–कार्यभावरूप परिणमन पारिणामिकभावमां नथी, एटले तेमां क्रियारूप परिणति नथी;
ए तो कारण–कार्य वगरनो, बंध–मोक्ष वगरनो सहज एकरूप छे. तेमां पर्याय एकाकार थतां
अतीन्द्रिय आनंदनुं झरणुं वहे छे.
अहीं मोक्षनां कारण–कार्य बंने पर्यायमां बताववा छे. अभेदपणे शुद्धद्रव्यने पण
मोक्षनुं कारण कहेवाय छे केमके तेमां एकाकार थईने मोक्षपर्याय प्रगटे छे. पण
पर्यायअपेक्षाए शुद्धात्मानी भावनारूप जे औपशमिकादि त्रण भावो ते मोक्षकारण छे.
पारिणामिकभाव पोते कारण–कार्यपणा वगरनो छे, ते अपेक्षाए तेने निष्क्रिय कहे छे. जे
शुद्धपर्याय परिणमी ते सत् छे, तेनेय ‘आत्मा’ कह्यो छे.
बंधपर्याय वखते, मोक्षमार्ग प्रगट ते वखते के मोक्षदशा प्रगटे ते वखते, परम
पारिणामिकभाव तो एवो ने एवो एकरूपे रह्यो छे, तेमां घट–वध थई नथी. मति–श्रुतज्ञान
वखते के केवळज्ञान वखते ज्ञानगुण तो पारिणामिकस्वभावे एवडो ने एवडो ज छे. (एम
आनंद, श्रद्धा वगेरे सर्वगुणोमां पारिणामिकभावे एकरूपता छे.) पर्यायधर्म परिणमवानो
छे, ने ध्रुवधर्मथी जोतां वस्तु अपरिणामी छे. –आवी वस्तु छे.
आत्मतत्त्व देहादिथी तो भिन्न छे; रागथी पण तेनुं स्वरूप भिन्न छे; ने एक
समयनी पर्याय जेटलुं पण आखुं तत्त्व नथी. अभेदपणे मोक्षपर्यायनुं कारण आत्मा ज छे;
पर्याय तरीके औपशमिकादि निर्मळपर्याय तेनुं कारण छे. द्रव्य अने पर्याय बे वच्चे वात छे,
परचीज के रागादि तो मोक्षनुं कारण नथी. व्यवहारमां (भेदथी) जुओ तो पूर्वपर्याय कारण,
ने अभेदथी जुओ तो ते काळनुं द्रव्य ज कारण छे.
अहीं पांच भावमां पारिणामिकभावने कारण–कार्य वगरनो निष्क्रिय कहेवो छे; तेने
अवलंबनारी पर्यायरूप जे परमात्मभावना छे ते मोक्षमार्ग छे, ते भावना औपशमिकादि
भावरूप छे.
एकला ध्रुवमां कारण–कार्य न होय;
एकला क्षणिकमां कारण–कार्य न होय.