Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : ३१
ध्रुवधामने अवलंबीने परिणमती पर्याय ते मोक्षकारण छे. मोक्षकारण पोतानी
पर्यायमां ज छे.
शक्तिरूप मोक्ष एटले शुद्धद्रव्यस्वभाव तो त्रिकाळ छे; ने पर्यायनी शुद्धता एटले
व्यकितरूप मोक्ष–तेनी आ वात छे. ते व्यक्तिरूप मोक्षनुं कारण औपशमिकादि भाव छे, अने
शक्तिरूप मोक्ष ते पारिणामिक भाव छे.
वस्तुमां बे अंश छे–एक ध्रुव अंश, बीजो उत्पाद–व्ययरूप अंश; आम द्रव्य ने पर्याय
बंनेरूप स्वतंत्र वस्तु छे. पर्यायअंश छे ते त्रिकाळ नथी, ते पलटतो अंश छे, ने ध्रुवअंश ते
स्थिर टकतो अंश छे. टकनार ने फरनार, एटले द्रव्य ने पर्याय, एवा स्वरूपे वस्तुनुं
अस्तित्व छे.
आत्मामां क्रिया होय?
हा; आत्मानी पर्यायमां मोक्षनी क्रिया छे, शुद्धभावनारूप मोक्षक्रिया ते ज धर्मनी
क्रिया छे, ए सिवाय बहारमां धर्मनी क्रिया नथी. शुद्धभावनारूप परिणति ते ज धर्मनी क्रिया,
ते ज मोक्षनुं कारण; तेमां राग न आवे. ध्रुव ते सामान्य, पर्याय ते विशेष, –एम सामान्य
विशेषरूप वस्तुने साबित करी छे.
आ वात घणीवार प्रवचनमां आवे छे तो खरी, घणी वात साथे गंभीरपणे अंदर
बधुं आवतुं होय छे–पण सांभळनार तेनी गंभीरताने पकडी ल्ये तो ख्यालमां आवे. बाकी
एम ने एम कही देवाथी तो श्रोताने मात्र उपरटपके सांभळीने धारणा थई जाय अने
अंदरनी गंभीरतानो ख्याल न आवे. श्रोता पोते अंदर महेनत करीने गंभीरता पकडे त्यारे
खरुं रहस्य लक्षमां आवे.
ध्रुवस्वभावमां राग के बंधन नथी, एटले रागथी के बंधनथी छूटवापणुं पण नथी;
ए तो सदा मुक्त ज छे. ने अवस्थामां जे बंधन छे तेने टाळीने मुक्तदशा व्यक्त करवी, तेनुं
कारण औपशमिकादि भाव छे. पर्यायनुं कारणकार्यपणुं पर्यायमां छे, द्रव्यमां नहि. –द्रव्य ने
पर्याय–बंने छे पोतामां, पण बंनेना स्वरूपमां कथंचित् भिन्नता छे.
द्रव्य ने पर्याय बंने वस्तुमां छे. बेमांथी एकने काढी नांखे तो वस्तु सिद्ध नहि थाय.
कार्य तो पर्यायवडे थाय छे; ध्रुवनो स्वीकार पण पर्यायवडे थाय छे. पर्याय काढी नांखो तो
ध्रुवनी प्रतीत करी कोणे? प्रतीत करनारी पर्याय ते मोक्षमार्ग छे, ध्रुवमां मोक्षमार्ग न आवे.
रागादिभावो ते बंधना कारणरूप क्रिया छे, ने शुद्धआत्मानी भावना ते मोक्षना
कारणरूप क्रिया छे; आमां बंधना कारणरूप क्रिया ते औदयिक–