३२ : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
भाव छे. ने मोक्षना कारणरूप क्रिया ते उपशमादिभाव छे, पारिणामिकभाव बंध–मोक्षना
कारणरूप क्रियाथी रहित छे, तेथी निष्क्रिय छे.
आम होवाथी शुद्ध पारिणामिकभाव ध्येयरूप छे, ध्यानरूप नथी. ध्यान पोते पर्याय
छे. ते ध्येयमां एकाग्र थाय तेनुं नाम मोक्षमार्ग छे. परमात्मतत्त्वनी भावनारूप शुद्धपरिणति
ते मोक्षकारण छे, ते ज मोक्षनी क्रिया छे, ते ज मोक्षमार्ग छे; ते धर्म छे; तेने शुद्धोपयोग कहो,
औपशमिक वगेरे भाव कहो;– बीजा अनेक नामोथी पण ते ओळखाय छे.
परम पारिणामिकभाव ध्येयरूप छे, ध्यानरूप नथी.
औपशमिकादि ३ भाव ध्यानरूप छे, मोक्षकारण छे.
औदयिकभाव ते परभाव छे, ते बंधकारण छे.
ध्रुवस्वरूप उपजतुं–विनशतुं नथी.
उपजवुं ने विनशवुं–ते पर्यायमां छे.
ए बंने धर्मो न होय तो दुःख टळीने सुख थाय नहि.
आ रीते ध्रुवने न ओळखे तेने ध्रुवनुं लक्ष करावे छे, ने पर्यायने न माने तेने पर्याय
बतावे छे. बे थईने वस्तुस्वरूप छे. बंनेने जाण्या वगर साची रुचि थाय नहि ने मोक्षमार्ग
सधाय नहि.
मोक्षना कारणरूप जे भावना छे ते एकदेश शुद्धनयनो विषय छे; तेमां निर्विकार
स्वसंवेदनलक्षणरूप भावश्रुत छे. आत्मानी एकदेश शुद्धतारूप आ भावना छे, ते मोक्षमार्ग
छे; ने पूर्ण शुद्धता थतां मोक्षदशा थाय छे, त्यारे ‘भावना’ दशा रहेती नथी. विकल्पमां
रागनुं वेदन छे, तेनाथी रहित एवुं निर्विकारस्वसंवेदन छे. मोक्षना कारणरूप एवी आ
‘भावना’ मां शुं भावे छे?–के ‘जे सकलनिरावरण अखंड एक प्रतिभासमय अविनश्वर
शुद्धपारिणामिक परमभावलक्षण निजपरमात्मद्रव्य ते ज हुं छुं’ –एम ज्ञानी भावश्रुतवडे
भावे छे; परंतु ‘खंडज्ञानरूप हुं छुं’ एम ज्ञानी भावतो नथी. आ प्रकारे शुद्धात्मानी भावना
करवी ते तात्पर्यवृत्तिनुं तात्पर्य छे.
आ व्याख्यान परस्पर सापेक्ष एवा आगम–अध्यात्मना, तेम ज द्रव्यार्थिक–
पर्यायार्थिक बंने नयना अभिप्रायना अविरोधपूर्वक ज कहेवामां आव्युं होवाथी सिद्ध छे–एम
विवेकीओए जाणवुं.
(जयजिनेन्द्र)