Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : ३३
: संपादकीय :
तीर्थंकर भगवान...एटले मात्र भारतनी ज नहि पण आखा विश्वनी महान
विभूति. –ईन्द्रो अने चक्रवर्तीओनी विभूति पण जेमना चरणमां झूकी जाय, एवा २४–
२४ तीर्थंकर भगवंतोने अवतार आपवानुं गौरव आपणी आ भारत माताने ज प्राप्त छे.
तीर्थंकरोना विहारथी पावन आपणा आ भारतदेशनी धार्मिकसमृद्धि बधा देशोमां सर्वोच्च
छे. हजी अढी हजार वर्ष पण पूरा नथी थया त्यारपहेलां भगवान वर्द्धमानतीर्थंकर आ
भरतभूमिमां साक्षात् विचरता हता; ने श्रेणीकराजा जेवा अनेक राजा–महाराजाओ
तेमना उपदेशथी पोताना आत्माने पवित्र करता हता. राजगृही जेवी भूमिनां रजकणो
पण ए तीर्थंकरना स्पर्शे तीर्थरूप बनी गया. ने भावश्रुतवडे जेमणे तीर्थंकर भगवाननो
भावस्पर्श कर्यो ते जीवो रत्नत्रय पामीने भावतीर्थरूप बनी गया.
भगवान श्री वर्द्धमान तीर्थंकर आपणा सौराष्ट्रमां पण पधारेला...ने तेमना नाम
उपरथी ‘वड्ढमाण’ वर्द्धमान नामनी नगरी बनी, ते ‘वड्ढमाण’ नुं अपभ्रंश ए ज आजनुं
‘वढवाण’. वर्द्धमानप्रभुनी वाणीना नाद आजेय सौराष्ट्रमां गूंजे छे ने भारतभरने
डोलावे छे. वर्द्धमानप्रभुनी खरी महत्ता त्यारे ज समजाय के ज्यारे तेमना कहेला उपदेशनुं
रहस्य आत्मामां समजाय. महावीर ए कोई सामान्य मनुष्य न हता, महामानव कहीने
तेमने ओळखाववा ते पण बराबर नथी, तेओ तो सर्वज्ञताने पामेला परमात्मा हता.
एमने सर्वज्ञ–वीतराग तरीके ओळखवा ए ज एमनी साची ओळखाण छे.
आवा महावीर २प६६ वर्ष पहेलां कुंडग्राम–वैशालीमां महाराजा सिद्धार्थ अने
त्रिशलामाताने त्यां सर्वज्ञपदने साधवा माटे चैत्र सुद तेरसे अवतर्या...७२ वर्षना आयुमां
आत्मसाधना पूर्ण करवानी हती...तेओ न तो राजमां रोकाया के न तो लग्न कर्युं. जीवंत
माता–पिताना मोहने पण छोडीने तेओ आत्मसाधक साधु थया. त्रिशलामातानो
एकनोएक लाडकवायो नंदन, पोतानी मातानी रजा लईने वीतरागमार्गे केवळज्ञान लेवा
चाल्यो...साधु थईने तेमणे मौनपणे आत्मसाधनामां ज पोतानुं चित्त जोड्युं ...सर्वज्ञ
थया पहेलां अधुरी दशामां तेमणे कोई उपदेश न आप्यो...तीर्थंकरो मुनिदशामां मौन ज
रहे छे. –केवो उत्तम आदर्श!
साडाबार वर्षनी आत्मसाधना बाद, एटले के ४२ वर्षनी वये प्रभु केवळज्ञान
प्रगट करी अरहंत थया; ने पछी विपुलाचल पर समवसरणमां दिव्यध्वनिनी वर्षा करीने,