३४ : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
रत्नत्रयपुष्पोथी भारतने नवपल्लवित कर्युं. त्रीस वर्ष सुधी धर्मना धोध वहेवडावीने अंते
पावापुरीथी प्रभुजी सिद्धालयमां पधार्या...मोक्ष पाम्या....छ वर्ष पछी एमना निर्वाणने
अढी हजार वर्ष थशे.
प्रभो! आजे अढी हजार वर्षेय भारत आपने भूल्युं नथी....अनेक मुश्केलीओ
वच्चे पण आपनुं धर्मशासन विजयवंत वर्ती रह्युं छे.....आपे वहावेला धर्मप्रवाहने
वीतरागी संतोए सुकावा दीधो नथी. ए वीतरागी अमृत आजेय भारतना हजारो–लाखो
जीवोने आनंद आपे छे...ने आपना परम उपकारने भारतना भव्यजीवो बहु बहु
भक्तिथी याद करे छे.
भारतना साधर्मी बंधुओ! आवो, आपणे सौ हळीमळीने आपणा वीरप्रभुना
शासनने उन्नत बनावीए...आपणे सौ वीरनां सन्तान छीए..., वीरप्रभुए दर्शावेला
रत्नत्रय मार्गने ओळखीने आपणे ते मार्गने उपासीए.
महावीरप्रभुना जन्मोत्सवने एवी उत्तम भावनाथी उजवीए के जैन–जैन वच्चे
क्यांय विखवाद न रहे ने भारत आखुंय जैनशासनना गौरवथी गूंजी ऊठे.
महावीरभगवान आजे पण जाणे के आपणी समक्ष ज बिराजता होय ने आपणे सौ
तेमनी परम छत्रछायामां धर्म साधना करता होईए–ए रीते एमनो मंगल जन्मोत्सव
उजवीए....ने ए तीर्थंकरदेवना जन्मकाळे भारतमां धर्मीनी जेवी जाहोजलाली हती तेवी
धर्मजाहोजलालीथी भारतदेशे फरीने शोभी ऊठे एवो यथाशक्त उद्यम करीए....सौ पोताने
महावीरना सन्तान समजीए.
अमे तो वीरतणा सन्तान.... जय महावीर!
“ अमारुं नाम... “ अमारुं धाम
पुस्तक वगेरेमां हस्ताक्षर तरीके गुरुदेव “ लखे छे. गत फागण वद एकमे
राजकोटमां छेल्ले दिवसे (विहारनी आगली राते) एक भाई हस्ताक्षर कराववा
आव्या, पद्धति मुजब गुरुदेवे “ करी आप्यो. ते भाईए नाम लखी आपवा कह्युं
त्यारे गुरुदेवे कह्युं के आ “ सर्वज्ञभगवाननी वाणी छे, ए ज अमारुं नाम छे ने
ए ज अमारुं धाम छे. “ अमारुं नाम–ने “ अमारुं धाम; “ मां बधुं समाय छे.
जे दिवसे आ वात थई ते दिवसे (फागण वद एकमे) सोनगढ
स्वाध्यायमंदिरमां “ नी स्थापना थयेली छे.)