Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : ५
अनादिथी बंधनभाव पर्यायमां वर्ते छे छतां तेनाथी रहित एवो अबंध शुद्ध आत्मा छे
–तेने शुद्धनयवडे अनुभवमां लेवो ते जिनशासन छे, ते जिन भगवाननो उपदेश छे.
परना संगवाळो–कर्मवाळो, अशुद्ध आत्मा तो अनादिथी जीव अनुभवी ज रह्यो
छे, पण तेने भगवान जिनशासन नथी कहेता, अशुद्धताना अनुभवनो भगवाननो
उपदेश नथी, पण शुद्ध आत्माना अनुभवनो भगवाननो उपदेश छे. आवो अनुभव
थई शके छे. भाई, ताराथी थई शके तेनो उपदेश भगवाने दीधो छे. भगवान पोते
स्वानुभवथी जेवा थया तेवो ज उपदेश दीधो, अने तेवुं ज वस्तुस्वरूप छे. –आवा
आत्माना अनुभवथी आनंद थाय छे ने दुःख टळे छे.
आत्मानो अनुभव कहो, मोक्षनो मार्ग कहो, जैनदर्शननुं रहस्य कहो, के
भगवानना उपदेशनो सार कहो...तेनी वात कुंदकुंदाचार्यदेवे आ १पमी गाथामां
समजावी छे.
वीतरागनुं शासन एटले शुं ? के जे रीते वीतरागभाव उत्पन्न थाय एवो
उपदेश–ते वीतरागनुं शासन छे. रागनुं सेवन तो जीव अनंतकाळथी करी रह्यो छे, पण
वीतरागभावनुं सेवन एटले के शुद्ध आत्मानो अनुभव तेणे कदी कर्यो नथी तेथी
वीतरागशासननुं सेवन तेणे कदी कर्युं नथी. ‘अनुभव’ मां भगवाननो सर्व उपदेश
समाई जाय छे. मोक्षमार्ग आत्माना अनुभवमां छे.–
अनुभव रत्नचिंतामणि, अनुभव है रसकूप,
अनुभव मारग मोक्षनो, अनुभव मोक्षस्वरूप.
आ चैतन्यरत्ननी किंमत शुद्धनयनी नजरे परखाय छे. शुद्धनय वडे अनुभव
करतां तेनो खरो महिमा जणाय छे. ए सिवाय रागना वेदन वडे चैतन्य रत्ननी किंमत
परखाती नथी. जेम हीरा–मोतीना पाणीनी परीक्षा खेडूनी पछेडीनो छेडो अडाडीने न
थाय, ए तो अंदरनी झलक पारखवा माटे झवेरीनी नजर जोईए. तेम चैतन्यस्वरूप
आत्मानी किंमत बाह्यलक्षी स्थूळ ज्ञान वडे न थई शके, तेने पारखवा माटे तो
अंतर्मुख शुद्धनयरूपी