Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : र४९४ “आत्मधर्म” : ७ :
प४. पर्यायद्रष्टिए कर्मनो संबंध होवा छतां शुद्धद्रष्टिए जोतां कर्मथी
अलिप्त आत्मस्वभाव छे–एम जिनशासन देखाडे छे.
पप. एकरूप ज्ञानस्वभावे आत्माने अनुभवे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय
अने त्यारे जीव जिनशासनमां आव्यो कहेवाय. तेनी जे
अनुभवदशा ते ज जैनशासन छे.
प६. आत्मा पोताना असंख्यप्रदेशी स्वक्षेत्र वाळो छे. पर्यायद्रष्टिए
जोतां नर–नारकादि भिन्न–भिन्न आकारो छे पण ते अभूतार्थ छे.
भूतार्थस्वभाव एकरूप असंख्यप्रदेशी ज्ञानस्वभावपणे ज सदाय
रहेलो छे.
प७. अरे, आ जीवन पूरुं थईने भव पलटवाना टाणां आव्या छतां
जीव पोताना स्वरूपनी संभाळ केम करतो नथी?
प८. ईन्द्रो स्वर्गमांथी ऊतरीने मनुष्यलोकमां तीर्थंकर वगेरे पासे जे धर्मनी
वात सांभळवा आवे छे ते धर्म केवो महिमावंत हशे!! शुं शुभ–
रागनी ने पुण्यनी ज वात सांभळवा ईन्द्रो स्वर्गमांथी आवता हशे?
प९. आत्माना चिदानंदस्वभावनो महिमा शुभ–रागथी पण पार छे.
६०. आत्माना पोताना स्वद्रव्य–स्वक्षेत्र–स्वकाळ ने स्वभावनुं मनन
करतां तेमांथी अलौकिक रहस्य नीकळे छे.
६१. ‘आत्मा’ तेने कह्यो के जेना अनुभवथी परम आनंद थाय छे.
रागादिना अनुभवमां आनंद नथी, तेथी ते खरेखर आत्मा नथी.
६र. द्रव्य शुं, पर्याय शुं? शुद्ध शुं, अशुद्ध शुं? एम बंने पडखांने जाणीने
जेना अनुभवथी आत्माने आनंद थाय तेनो आदर करवो.
६३. शुद्धनय अने व्यवहारनय ए बन्ने नयने जाणीने, शुद्धनयना,
विषयरूप शुद्ध आत्मस्वभावने अनुभवतां सम्यग्दर्शन अने
परम आनंद थाय छे.
६४. व्यवहारना विषयरूप जे अशुद्धता के भेद, तेना अनुभवथी
आनंद थतो नथी, माटे तेने खरेखर आत्मा कहेता नथी, एटले
ते आदरणीय नथी.
६प. आत्मा छे–पण ते देखातो केम नथी? भाई! आ बधाने जे जाणे
छे ते कोण छे? बधांने जाणनार पोते ज आत्मा छे; ते अंतर्मुख
थईने पोते पोताने पण जाणी शके छे.
६६. अरे जीव! अनेकविध विपरीत कल्पना करीने तारा आत्माने ज तुं
भूल्यो. आत्मा नथी–अर्थात् हुं नथी एम कहेनार पोते ज अस्तिरूप
छे.–छतां आश्चर्य छे के पोते पोताना अस्तित्वनी ना पाडे छे!
६७. जे ज्ञाननी साथे सुख न होय एने तो ज्ञान कोण कहे? आत्मा
सारभूत छे केमके तेने जाणतां जाणनारने सुख थाय छे.