Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
६८. शुद्धआत्माना ज्ञानथी सुख छे; शुद्धआत्माना ज्ञान वगर अन्यने
जाणतां सुख नथी एकली अशुद्धताने जाण्या करे तेथी सुख नथी.
शुद्धात्माने जाणतां सुख छे माटे शुद्धआत्मा ज साररूप छे.
६९. शुद्धआत्मानी सन्मुख थईने जे ज्ञान थाय तेने खरूं ज्ञान कहे छे,
ते ज सम्यकत्व छे, ते ज सुख छे; ते ज धर्म छे.
७०. हजी तो ज्ञाननी पर्याय आत्माथी पोताथी छे, ने बीजाथी नथी–
एम पर्यायनी स्वतंत्रता पण जेने न बेसे तेने तो पर्यायने
अंतरमां वाळीने शुद्धनयना अनुभवनो अवसर केवो?
७१. अरे, पोतानी पर्यायने पराधीन मनावे, कर्मने लीधे मनावे ते तो
कर्म सामे ज जोया करे, ते ज्ञानस्वभाव सामे क्यारे जुए?
७र. पर्याय परने लीधे नहि ने एकली पर्याय जेटलो आखो आत्मा नहि,
आत्मा तो अखंड स्वभावथी परिपूर्ण छे. –एने शुद्धनय देखे छे.
७३. शुद्धनयरूपी आंख जेने ऊघडी नथी तेने धर्म थतो नथी, ते
चैतन्यसूर्यने देखतो नथी.
७४. अहा, झगझगतो चैतन्यसूर्य तेना स्वानुभव वडे जेणे ज्ञानकिरण
प्रगट कर्या तेनो अवतार सफळ छे.
७प. पोताना आत्माने शुद्धपणे जाण्यो त्यारे अरिहंतप्रभु वगेरेनी
शुद्धिने ओळखी; आवी ओळखाण करे त्यारे ज साची स्तुति थाय.
७६. अहो, अमे तने आवो ज्ञायकआत्मा समयसारमां देखाड्यो तेने
हे भव्य! तुं प्रमाण करजे...हा पाडीने तेवो स्वानुभव करजे.
७७. आत्मामां वीरपणुं छे, वीरपणुं आत्मामा जाणीने तेनुं ज्ञान–ध्यान
करतां आत्मामां वीरता प्रगटे छे...ने जीतना नगारां वागे छे.
७८. जिनवाणी परमागम–के जेने केवळज्ञानरूपी शरीर छे, ते
जिनवाणी आत्मानो परम शुद्धस्वभाव देखाडे छे.
७९. स्वभावनी श्रद्धारूपी बीज ऊगी ते केवळज्ञानरूपी पूर्णिमा थये
छूटको. –ए महा मंगळ छे.
‘सात’ ने ‘नव’ सोळ छे परिपूर्ण कहेवाय; जन्मोत्सव गुरुदेवनो
आनंदथी उजवाय. गुरु बतावे पूर्णपद आनंद मंगलकार; देखो सौ
भव्यो तमे थाशो भवथी पार. बीज ऊगी गुरुदेवने, ए थाशे केवळ
पूर्ण; सूर्य कीर्ति सम शोभशे, सर्व अंगथी धर्म. जन्मोत्सव–जयमालिका
नगर वींछीया गाम; चंद्रप्रभु जिन चरणमां फरी फरी करुं प्रणाम.
(ब्र. ह. जैन)