Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : र४९४ “आत्मधर्म” : ९ :
धर्मी जीव केवा छे?
(मोरबी–वांकानेर चैत्र सुद ८ थी १प स.गा.७प)

भगवान आत्मा देहथी भिन्न ज्ञानतत्त्व छे; आवा आत्मानुं ज्ञान थतां शुं
थाय? एटले के जे ज्ञानी थयो ते जीव कई रीते ओळखाय? तेनी आ वात छे. आ
समजतां अंदरमां पोताने तेवुं भेदज्ञान थाय छे.
जड–अचेतनथी तो सदाय भिन्न आत्मा छे; अंदर रागनी वृत्तिथी पण जुदुं जे
ज्ञानतत्त्व, तेनामां सर्वज्ञ थवानी ताकात छे. आत्मानी शक्तिनुं भान करीने जे सर्वज्ञ
थया, तेमणे जोयेलुं ने अनुभवेलुं आत्मतत्त्व केवुं छे? तेनुं चिह्न शुं छे? ते ओळख्या
वगर धर्म थाय नहि. ज्ञान ने आनंदथी भरेलुं आत्मतत्त्व अनुभवमां लईने जेओ
वीतराग–सर्वज्ञ परमात्मा थया तेमनी वाणी ते शास्त्र छे. आ समयसार ते सर्वज्ञ
भगवाननी वाणी छे. सर्वज्ञपरमात्मानी वाणी झीलीने श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे ते रच्युं छे.
तेमां आ ७प मी गाथामां ज्ञानीनुं चिह्न ओळखावतां कहे छे के–
परिणाम कर्मतणुं अने नोकर्मनुं परिणाम जे,
ते नव करे जे मात्र जाणे ते ज आत्मा ज्ञानी छे.
ज्ञानी पोताने ज्ञानस्वभावरूप जाणे छे; ज्ञानथी भिन्न एवा कर्म के शरीरादिने
अंशमात्र पोताना जाणता नथी; ज्ञानभावरूप जे कार्य तेने ज ते करे छे. आवा
ज्ञानकार्यना कर्तापणे ज्ञानी ओळखाय छे.
पोताना स्वरूपनी सावधानीनो अभाव ते मोहभाव छे. श्रीमद् राजचंद्र कहे छे के–
उपजे मोह–विकल्पथी समस्त आ संसार;
अंर्तमुख अवलोकतां विलय थतां नहि वार.
आवा मोहनो नाश कर्या वगर, एटले के निजस्वरूपना अवलोकन वगर, जीवे
व्रत–तप–त्याग–दान–दया वगेरे शुभपरिणाम पण अनंतवार कर्या, पण जे खरूं
निजस्वरूप छे तेने न समजवाथी संसारमां ज रखड्यो. अहीं कहे छे के भाई! जे
शुभराग छे ते कांई ज्ञानीनुं चिह्न नथी. शुभराग वडे ज्ञानी ओळखाता नथी. पण