Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १० : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
शुभाशुभ समस्त रागथी भिन्न एवुं जे ज्ञान, ते ज्ञानना कर्तारूप आत्मस्वभावनी
ओळखाण–अनुभूति ते ज्ञानीनुं चिह्न छे, ते ज ज्ञानीनुं कार्य छे. राग ते धर्मीनुं कार्य
नथी, देहनी क्रिया ते धर्मीनुं कार्य नथी.
ज्ञानीने निजस्वरूपना अंतर्मुख अवलोकनथी वीतरागी आनंदपर्याय प्रगट
थाय छे तेनो ते कर्ता छे; बहिर्मुख भावोनो कर्ता ते नथी, तेनाथी तो ते पोताने भिन्न
अनुभवे छे. राग ते आत्माथी जुदो पडी जाय छे माटे ते आत्मभाव नथी, ते ज्ञानीनुं
लक्षण नथी, ते ज्ञानीनुं कार्य नथी. ज्ञानीनुं कार्य तो ज्ञानमय होय. चैतन्यरसना
अनुभवनी खुमारी ज्ञानीने कदी ऊतरती नथी.
आत्मा भगवान छे...ज्ञान ने आनंदथी भरेलुं जे महिमावंत तत्त्व ते आत्मा
छे; कर्म अने शरीरादिनां परिणाम तेनाथी बाह्य छे, तेनो कर्ता जीव नथी. जीवनुं स्वरूप
शुं छे? ते जाण्यां वगर ज्ञानीना चिह्ननी खबर पडे नहि. ‘आ ज्ञानी छे, आ धर्मात्मा
छे, आ मोक्षमार्गना साधक छे’ एम कया लक्षणथी ओळखाय? तेनी आ वात छे. राग
ते आत्मानो स्वभाव नथी. ते आत्मानुं लक्षण नथी; तेथी रागनी अनुभूति वडे ज्ञानी
ओळखाता नथी. ज्ञानीए अंतरमां सर्वज्ञस्वभावी आत्माने जाण्यो छे, तेथी ते
ज्ञानपरिणामने ज करे छे. एटले एवा ज्ञानपरिणामना कर्तृत्व वडे ज्ञानी ओळखाय
छे. जेने रागनुं कर्तृत्व छे ते ज्ञानी नहि; जेने देहनुं–कर्मनुं–जडनुं कर्तृत्व छे ते ज्ञानी
नहि. ज्ञानी एटले ज्ञानसूर्य; ते ज्ञानसूर्यनां किरणो तो निर्मळ ज्ञानमय छे;
ज्ञानकिरणोमां रागादि मेल नथी.
ज्ञानीने ज्ञाननी भूमिकामां ज्ञाननुं ज कर्तृत्व छे, रागनुं कर्तृत्व नथी; छतां ते
भूमिकाने योग्य पूजा–भक्ति–यात्रा ईत्यादि देव–गुरुना बहुमानना शुभभाव आवे छे.
पण ते शुभभाव पोते कांई ज्ञानीनुं चिह्न नथी. ते शुभराग ज्ञाननुं परज्ञेय छे, ते
ज्ञाननुं स्वज्ञेय नथी. रागने जे स्वज्ञेयपणे अनुभवे छे तेणे चैतन्यना अंतरखजानाने
ताळा मार्या छे. चैतन्यप्रभु प्रशमरसनो शांतपिंड, तेमां रागनी आकुळता नथी.
आत्मानुं स्वज्ञेय तो ज्ञानमय छे;– जेने जाणतां–आनंद प्रगटे ने जन्ममरणनो अंत
आवे–एवुं परमतत्त्व स्वज्ञेय आत्मा छे. आवा आत्माने स्वज्ञेय करतां सम्यग्दर्शन थयुं
ने आनंदनो अनुभव प्रगट्यो ते ज ज्ञानीनुं चिह्न छे.
जेम माटी घडा साथे एकरूप थईने तेनी कर्ता छे, तेम ज्ञानी रागादि साथे
एकरूप थईने तेनो कर्ता नथी, पण तेनाथी भिन्नपणे तेनो ज्ञाता ज छे. जे ज्ञाता–
परिणाम छे तेनी साथे एकरूपपणे ज्ञानी तेना कर्ता छे. ते ज्ञानपरिणाममां रागादिनुं
कर्तृत्व नथी; एवा ज्ञानपरिणाम वडे ज ज्ञानी ओळखाय छे.
भगवान आत्मा रागादिथी रहित चेतनस्वभावी छे; छतां राग वडे तेनी प्राप्ति
थवानुं जे माने छे ते रागने ज आत्मा माने छे; रागथी रहित एवा ज्ञानपणे