Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
आत्मानुं परमार्थ स्वरूप.तेने ओळखवानुं चिह्न
(प्रवचनसार गा. १७र उपरना प्रवचनोमांथी : राजकोट)

देहादि सर्वे पुद्गलरचना छे, ते जीव नथी. जीव पोताना असाधारण लक्षण वडे
ते देहथी भिन्न छे. ते लक्षण शुं छे? के जेना वडे जीवनुं परद्रव्योथी भिन्न वास्तविक
स्वरूप ओळखाय, ने भेदज्ञान थतां वीतरागी आनंद थाय! –तेनुं आ वर्णन छे.
अरसपणुं वगेरे बोलो द्वारा जीवनुं पुद्गलथी भिन्नपणुं ओळखाय छे. अने
पोताना स्वभावआश्रित एवा चेतनागुण वडे आत्मा समस्त अन्य पदार्थोथी जुदो
ओळखाय छे.
‘अलिंगग्रहण’ आत्मा कह्यो तेमांथी वीस अर्थो अमृतचंद्राचार्यदेवे काढीने
अलौकिक आत्मस्वरूप समजाव्युं छे.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे...केवुं ज्ञान? अतीन्द्रियज्ञान: आवो अतीन्द्रियज्ञानमय
आत्मा एवो नथी के इंद्रियो वडे जाणे. पांच इंद्रियोरूपी लिंगवडे जेने ग्रहण नथी,–
इंद्रियोवडे जे जाणतो नथी–ते अलिंगग्रहण छे. एकली ‘इंद्रियो तरफनो बोध ते साचो
बोध नथी, ने ते आत्मानुं खरूं चिह्न नथी. इंद्रियज्ञानरूप व्यवहार होवा छतां ते खरो
आत्मा नथी. आत्मा तो अतीन्द्रियज्ञानमय छे.
अतीन्द्रिय ज्ञान कहो के सर्वज्ञता कहो. ‘सर्व’ एवो शब्द छे ते शब्दसमय; तेना
वाच्यरूप सर्व पदार्थो छे ते अर्थसमय; अने जाणनारुं सर्वज्ञतारूप ज्ञान–ते ज्ञानसमय;
आम त्रणे समय सत् छे, ते सत्नी परुपणा छे; जे होय तेनी परुपणा ने तेनुं ज्ञान
होय. एने
‘सत्पद परुपणा’ कहेवाय छे. ज्ञानमां ‘सर्वज्ञता’ मान्या वगर सर्व
पदार्थोनी सत्तानो यथार्थ स्वीकार थई शके नहि.
इंद्रियथी जुदो आत्मा–ते क्यारे जाण्यो कहेवाय? के पोते अतीन्द्रिय थईने जाणे
त्यारे. ईन्द्रियो तरफ ज रहीने जाण्या करे एवो नहि, पण अतीन्द्रिय थईने जाणे एवो
आत्मा छे.