Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
कदी अनुपयोगरूप थतो नथी. जेम मीठुं ओगळीने खारा पाणीरूप थतुं जोवामां आवे
छे, तेमां कांई विरोध नथी, पण तेवी रीते उपयोगरूप आत्मा पलटीने कदी जडरूप थई
जाय–एम थतुं नथी, केमके उपयोगने अने जडने विरुद्धता छे. उपयोगरूप आत्मा पोते,
ते रागने अवलंबीने जाणवाना स्वभाववाळो नथी. अहो, जगतना अवलंबन वगर
जगतने जाणनारो आत्मा छे, एकला पोताना स्वभावना अवलंबने जाणनारो आत्मा
छे. आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य! आवा आत्माने तुं जाण! प्रत्यक्षज्ञानपूर्वक आवी
आत्मप्रतीति ते सम्यग्दर्शन छे.
मोक्षमार्गमां साथे राग हो, व्यवहार हो, पण तेना अवलंबने मोक्षमार्ग टकयो
नथी; ते भिन्न ज्ञेयपणे छे. तेना अवलंबननुं माहात्म्य धर्मीने रह्युं नथी. क्षणेक्षणे
आत्मस्वभावने अवलंबतो धर्मीजीव मोक्षमार्गनी निर्मळतापणे परिणमे छे, तेने ज
‘आत्मा’ कहेवामां आवे छे. चैतन्यस्वभावने ज अनुसरनारो उपयोग ते आत्मानुं
चिह्न छे.
चैतन्यचिह्नरूप जे लिंग एटले के उपयोग, तेने क्यांय बहारथी आत्मा ग्रहण
करतो नथी, स्वयमेव पोते उपयोगरूप थईने परिणमे छे. रागमांथी ज्ञान आवे, के
शब्दोमांथी ज्ञान आवे–एम नथी. तीखी तलवार जेवी सूक्ष्म ज्ञानद्रष्टिवडे आत्मा
पकडाय छे. भाई, परवस्तुनो उपयोग तुं करी शकतो नथी; उपयोगस्वरूप तुं छो –
तेनो ज उपयोग कर. परमांथी कांई ज्ञान के सुख लेवा मागीश तो ते नहि आवे.
अंदरमां ज्ञान–सुखनो समुद्र भर्यो छे तेमांथी अखंड सरवाणी ज्ञान–सुखनी वह्या करे
छे. उपयोगने निजस्वरूपमां जोडीने आत्मा स्वयमेव आनंदपणे परिणमे छे.
आनंदरूपे परिणमवामां आत्माने कोई बहारनुं अवलंबन नथी; उपयोगनुं
उपयोगस्वरूपमां जोडावुं ते ज परम आनंद छे. पहेलां उपयोगनुं ने परभावनुं
भेदज्ञान करीने परभावथी जुदो पडीने निजभावमां आव्यो त्यां आत्माथी ज
आनंदनो दरियो उल्लसे छे.
परभावोथी भेदज्ञान करीने आत्मानो उपयोग ज्यां अंतरमां वळ्‌यो त्यां तेने
रोकी शके एवी कोई चीज जगतमां नथी. द्रव्यस्वभाव तरफ जे परिणति झुकी ते पाछी
पडे एम बने नहि. स्वभावमां जे पर्याय तल्लीन थई ते पर्याय कोईथी हणाय नहि; ए
पर्याय जीवंत थई ते कदी मरे नहि. आवा उपयोगवाळो आत्मा ते परमार्थ आत्मा छे.
तेमां रागरूपी मेल नथी.
उपराग वगरनो उपयोग ते आत्मा छे; अंतर्मुख उपयोग–के जेमां रागनो मेल
नथी, कर्मनुं आवरण नथी, एवो जेनो स्वभाव छे ते आत्मा छे. शुभाशुभ रागमां
जोडायेलो उपयोग ते खरेखर आत्मा नथी. शुभ के अशुभ ते आत्मानुं