Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
श्रीमद् राजचंद्रजीनां वचनामृत
जन्मशताब्दि–लेखमाळा (७)
(३र७) जे महात्माओ असंग चैतन्यमां लीन थया छे, थाय छे अने थशे तेमने
नमस्कार.
(३र८) जीवे विकल्पना व्यापार करवा नहीं.
(३र९) विचारवान असद्दविचारणा अने अकार्य करतां क्षोभ पामे. (उपदेश छाया)
(३३०) जीव पोताने भूली गयो छे, अने तेथी तेने सत्सुखनो वियोग छे. पोताने
भूली गयारूप अज्ञान, ज्ञान मळवाथी नाश थाय छे.
(३३१) ‘जेणे आत्मा जाण्यो तेणे सर्व जाण्युं’ (बीजी आवृत्ति पृ. १०)
(३३र) सर्व प्राणीमां समद्रष्टि. (पा.र)
(३३३) जींदगी टूंकी छे अने जंजाळ लांबी छे; माटे जंजाळ टूंकी कर तो सुखरूपे जींदगी
लांबी लागशे. (पृ.४)
(३३४) पवित्रतानुं मूळ सदाचार छे. (पृ.४)
(३३प) शुद्ध सच्चिदानंद करुणामय परमेश्वरनी भक्ति ए आजना तारा सुकृत्यनुं
जीवन छे. (६)
(३३६) सत्संग ए सर्व सुखनुं मूळ छे. (३०)
(३३७) वैराग्य ए ज अनंतसुखमां लई जनार उत्कृष्ट भोमियो छे. (प७)
(३३८) आपत्तिकाळे पण धर्मनुं द्रढपणुं त्यागवुं नहीं (७प)
(३३९) विनय करवा योग्य पुरुषोनो यथायोग्य विनय करवो. (७६)
(३४०) गुणीना गुणमां अनुरक्त थाओ. (९८)
(३४१) महापुरुषनां आचरण जोवा करतां तेमनुं अंतःकरण जोवुं ए वधारे परीक्षा
छे. (१र९)
(३४र) ज्यां ‘हुं’ माने छे त्यां तुं नथी. (१३०)
(३४३) एकथी मैत्री करीश नहीं, कर तो आखा जगतथी करजे.