: वैशाख : र४९४ “आत्मधर्म” : १९ :
(३४४) आ काळमां आटलुं वध्युं–झाझा मत, झाझा तत्त्वज्ञानीओ, झाझी माया अने
झाझो परिग्रहविशेष. (१३र)
(३४प) तत्त्वाभिलाषाथी मने पूछो तो हुं तमने निरागीधर्म बोधी शकुं खरो. (१३र)
(३४६) शांतस्वभाव ए ज सज्जनतानुं खरूं मूळ छे. (र११)
(३४७) आत्मज्ञान अने सज्जनसंगत राखवी. (र१र)
(३४८) जे कोई तमने धर्मनिमित्ते ईच्छे तेनो संग राखो. (र१७)
(३४९) जेने लागी छे तेने ज लागी छे, अने तेणे ज जाणी छे; ते ज “पियु पियु”
पोकारे छे. (र४र) (पियु एटले प्रिय एवो आत्मा.)
(३प०) चमत्कार बतावी योगने सिद्ध करवो–ए योगीनुं लक्षण नथी. (र४९)
(३प१) जगतमां रूडुं देखाडवा माटे मुमुक्षु कांई आचरे नहि, पण रूडुं होय ते ज
आचरे. (पा. रप६)
(दरेक वचनामृतना छेडे जे नंबर लखेल छे ते बालबोध टाईपवाळी
बीजी आवृत्तिनां पृष्ठना छे.)
(३पर) अपूर्व पोताथी पोताने प्राप्त थवुं दुर्लभ छे. जेनाथी प्राप्त थाय छे तेनुं स्वरूप
ओळखवुं दुर्लभ छे; अने जीवने भूलवणी पण ए ज छे. (रप८)
(३प३) गमे तेटली विपत्तिओ पडे तथापि ज्ञानी द्वारा सांसारिक फळनी ईच्छा करवी
योग्य नथी. (र८३)
(३प४) उदय जोईने उदासपणुं भजशो नहि.
(३पप) ज्ञानी पासे ज्ञान ईच्छवुं ते करतां बोधस्वरूप समजी भक्ति ईच्छवी ए
परम फळ छे. (३१०)
(३प६) संसारमां सुख शुं छे– के जेना प्रतिबंधमां जीव रहेवानी ईच्छा करे छे!
(३१प)
(३प७) जेने विषे परमार्थधर्मनी प्राप्तिनां कारणो प्राप्त थवा अत्यंत दुसम थाय ते
काळने तीर्थंकरदेवे दुसम कह्यो छे. (३र३)
(एटले आ काळमां पण जेणे परमार्थधर्मनी प्राप्तिनां कारण मेळवी लीधा
तेने माटे दुषमकाळ नथी रहेतो, तेने माटे तो धर्मकाळ छे. ज्यारे धर्म करे
त्यारे धर्मकाळ.)