Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २० : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
(३प८) परमार्थ मार्गनुं लक्षण ए छे के अपरमार्थने भजतां जीव बधा प्रकारे कायर
थया करे, –सुखे अथवा दुःखे. (३३)
(३प९) जे कुळने विषे जन्म थयो छे, अने जेना सहवासमां जीव वस्यो छे, त्यां अज्ञानी
एवो आ जीव ममता करे छे, अने तेमां निमग्न रह्या करे छे. (पा. ३४८)
(३६०) अज्ञानथी सद्दविवेक पामवो दुर्लभ छे–एम समजो.
(३६१) प्रतिकूळ प्रसंग जो समताए वेदवामां आवे तो जीवने निर्वाणसमीपनुं
साधन छे. (३प१)
(३६र) अनन्य शरणना आपनार एवा श्री सद्गुरुदेवने अत्यंत भक्तिथी
नमस्कार. (३प१)
(३६३) अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र अने अनंतवीर्यथी अभेद एवा
आत्मानो एक पळ पण विचार करो. (वचनामृत : र१ वर्ष १९)
(३६४) निर्ग्रंथता धारण करतां पहेलां पूर्ण विचार करजो; ए लईने खामी आणवा
करतां अल्पारंभी थजो. (पृ. १३०)
(३६प) स्त्रीना स्वरूप पर मोह थतो अटकाववाने वगर त्वचानुं तेनुं रूप वारंवार
चिंतववा योग्य छे.(पृ. १३०)
(३६६) रडावीने पण बच्चांना हाथमां रहेलो सोमल लई लेवो. (पृ. १३०)
(३६७) निर्मळ अंतःकरणथी आत्मानो विचार करवो योग्य छे. (पृ. १३०)
(३६८) सत्ज्ञान अने सत्शीळने साथे दोरजे. (पृ. १३०)
(३६९) आजे एवुं कृत्य करजे के रात्रे सुखे सूवाय. (पृ.प)
(३७०) आजनो दिवस सोनेरी छे, पवित्र छे, कृतकृत्य थवा रूप छे, एम सत्पुरुषोए
कह्युं छे; माटे मान्य कर. (पृ.प)
(३७१) जेनी प्रत्यक्षदशा ज बोधरूप ते महत्पुरुषने धन्य छे. (३७४)
(३७र) सिद्धांतनो विचार घणा सत्संगथी तथा वैराग्य अने उपशमनुं बळ
विशेषपणे वध्या पछी कर्तव्य छे. (३७६)
(३७३) ज्ञानस्वरूपपणुं ए आत्मानुं मुख्य लक्षण छे, अने तेना अभाववाळुं मुख्य
लक्षण जडनुं छे. ते बंनेना अनादि सहज स्वभाव छे. (३९०)