Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
भेदज्ञान ते ज मोक्षनो उपाय छे
(सुरेन्द्रनगर–वढवाण–जोरावरनगरना प्रवचनोमांथी
वीर सं. र४९४ चैत्र वद त्रीज थी तेरस)
(समयसार–कर्ताकर्म अधिकार शरूआतथी)
आत्मा देहथी भिन्न, ज्ञानस्वरूप वस्तु छे. सर्वज्ञ परमात्मा थया ते क्यांथी
थया? –आत्मामां ज पूर्ण ज्ञानस्वभाव छे तेनुं भान करीने तेमां लीनता वडे आत्मा
पोते सर्वज्ञ परमात्मा थाय छे. एवा सर्वज्ञ अनादिकाळथी थता आवे छे. विदेहक्षेत्रमां
अत्यारे सीमंधर परमात्मा वगेरे सर्वज्ञ अरिहंत भगवंतो बिराजे छे. तेमनो
दिव्यध्वनि झीलीने, साक्षात् सांभळीने अने अनुभवीने, कुंदकुंदाचार्यदेवे आ समयसार
शास्त्र रच्युं छे. तेमां आ कर्ताकर्म अधिकार द्वारा अलौकिक भेदज्ञान कराव्युं छे.
पोतानुं स्वरूप भूलीने जीव ज्ञानथी विरुद्ध एवा शुभाशुभ परभावो साथे तथा
देहादि जड साथे कर्ताकर्मपणुं माने छे. हुं कर्ताने राग मारुं कार्य, हुं कर्ताने देहनी क्रिया
मारुं कार्य–एम अज्ञानथी मानीने जीव संसारमां रखडी रह्यो छे. चिदानंद स्वरूप हुं छुं,
ज्ञान ज मारुं कार्य छे, ने रागादि परभाव माराथी भिन्न छे–एम बंनेनुं भेदज्ञान
करीने, रागादि साथे कर्ताकर्मपणानी मिथ्याबुद्धिनो जेणे नाश कर्यो अने रागरहित ज्ञान
भावरूप थया, तथा कर्मनो नाश करीने मोक्षपद पाम्या, एवा सिद्धालयमां बिराजमान
सिद्धभगवंतोने मंगळरूपे याद करीने नमस्कार करीए छीए. –शा माटे? के तेमनी जेम
पोताना आत्मामांथी पण परभावो साथे कर्ताकर्मपणानी बुद्धिरूप जे मिथ्यामद, तेनो
नाश करवा माटे; जुओ, आ सिद्धपदनो उपाय. ज्ञान अने रागनी एकताबुद्धि ते
अनंतानुबंधी मद छे, ने ज्ञान अने रागना भेदज्ञान वडे तेनो नाश थईने
सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे. ते मोक्षनो मार्ग छे, ते धर्म छे.
अनादिनी जे अज्ञानप्रवृत्ति छे ते भेदज्ञानवडे ज मटे छे, बीजो कोई तेनो उपाय
नथी. शुभरागनी क्रिया करतां–करतां अज्ञान मटे एम बनतुं नथी. रागनी क्रिया