ज्ञान तो धीरूं छे, निराकुळ छे. बंनेनी जात ज जुदी छे. रागना कर्तृत्वमां अटकवानो
ज्ञाननो स्वभाव नथी, ज्ञाननो स्वभाव तो लोकालोकने जाणवानो छे. जे रागना
कर्तृत्वमां रोकाई जाय छे ते ज्ञान लोकालोकने जाणी शकतुं नथी; आ रीते राग ते तो
ज्ञानथी विरुद्धभाव छे.
होतो नथी. शुभराग करीने में कांईक धर्म कर्यो–एम अज्ञानी तेमां रोकाई जाय छे ने
ज्ञानस्वभावथी विमुख थाय छे, ते जीव अज्ञानबुद्धिने लीधे चारगतिमां अवतार करी–
करीने दुःखी थाय छे.
एकमेक होय एम ते परभावोमां तन्मयपणे वर्ते छे. ज्ञान तो स्वभावभूत छे, ने
रागादि परभावभूत छे. –आम बंनेनी अत्यंत भिन्नता छे. ज्ञानमां रागादि जणाय
त्यां, हुं ज्ञान कर्ता ने रागादि मारुं कर्म–एम अज्ञानी रागनी क्रियापणे परिणमे छे, एनुं
नाम अज्ञानमय प्रवृत्ति छे, अने ते ज बंधनुं कारण छे. ज्यांसुधी अज्ञानमयप्रवृत्ति छे
त्यांसुधी जीव संसारमां रखडे छे. रागथी भिन्न हुं तो ज्ञानमात्र छुं, ज्ञानक्रियामां
रागक्रिया नथी, ने रागक्रियामां ज्ञानक्रिया नथी–एम अत््यंत भिन्नता जाणीने जीव
ज्यारे ज्ञानमात्रभावपणे परिणमे छे त्यारे रागना अंशने पण ते पोतामां भेळवतो
नथी, एटले तेने कर्मबंधन पण थतुं नथी; तेथी ते जीव कर्मोथी छूटे छे. आ रीते
भेदज्ञान ते ज मोक्षनो उपाय छे.
रागरूप पण नथी. पुण्य–पापथी भिन्न ने आनंद साथे एकरूप एवो जे पोतानो
आत्मस्वभाव तेनी वातनुं यथार्थ लक्षपूर्वक श्रवण जीवे कदी कर्युं नथी. पोताना