Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
स्वरूपने भूलीने अनंतकाळथी जीव चार गतिमां भ्रमण करी रह्यो छे. देवगतिनाय
अवतार अनंतवार कर्या ने नरकगतिना अवतार पण अनंतवार कर्या. भले, एने
एनी खबर नथी; जेम माताना पेटमां हतो ने छ मासनो बाळक हतो ते वखते शुं हतुं
तेनी जीवने खबर नथी, पण तेथी कांई ते वस्तु मटी न जाय; तेम पूर्वे अनंतकाळमां
अनंत अवतार अज्ञानभावे जीवे कर्या छे; अत्यारे खबर न होय तेथी शुं? पूर्वे क्यांक
रह्यो तो हशे ने? तो क्यां रह्यो? मोक्षमां ने पूर्णानंदमां रह्यो होय तो फरीने अवतार
न होय. मोक्षमां तो गयो नथी, संसारमां ज रह्यो छे; संसार एटले चारे गति, ते
आत्माना स्वभावथी विरुद्ध छे. आत्माना स्वभावरूप भावथी चार गति न मळे; चारे
गति ते विभावनुं फळ छे.
आत्मानो स्वभाव तो ज्ञानने आनंदमय छे. जेम सूर्यनो प्रकाश–स्वभाव छे,
तेम आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे. ते ज्ञानमां ज्ञान ज छे, ते ज्ञानमां राग नथी. ज्ञाननुं
ज्ञानरूप थवुं ते आत्मानो स्वभाव छे. पुण्य–पापना भावो ते मलिन–आस्रवो छे, ते
निर्मळ ज्ञानरूप नथी. जेम सेवाळ ते पाणीनुं निर्मळस्वरूप नथी पण मेल छे; तेम
रागादि परभावो ते चैतन्यनुं निर्मळस्वरूप नथी पण परभावरूपी मेल छे. ते मेलपणे
ज अज्ञानी पोताने अनुभवे छे, पण भगवान महिमावंत शुद्धचैतन्यतत्त्वने
अनुभवतो नथी. भाई, तारुं खरूं स्वरूप तो राग वगरनुं निर्मळ छे. निर्मळ
ज्ञानभाव, अने रागादि परभाव ए बंनेनुं भेदज्ञान कर. तारा चैतन्यतत्त्वने जाण्या
वगर तारी रखडपट्टीना आरा नहि आवे.
आ मनुष्यपणुं अनंतकाळे मोंघुं एवुं तने प्राप्त थयुं. ते मनुष्यपणामां पण
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माना धर्मनुं श्रवण महा दुर्लभ छे. प्रसन्नतापूर्वक चैतन्यस्वरूपना
प्रेमथी तेनी वात पण जेणेे सांभळी छे ते जीव अल्पकाळमां अवश्य मुक्ति पामे छे.
ईन्द्रो स्वर्गमांथी जे वात सांभळवा माटे नीचे मनुष्यलोकमां ऊतरे, एवुं आ धर्मश्रवण
जीवने दुर्लभ छे. रागथी भिन्न चैतन्यनुं श्रवण करीने, बंनेनुं भेदज्ञान करीने, रागथी
जुदा चैतन्यने अनुभववो ते अपूर्व धर्म छे.
पोतानुं स्वरूप समजतां अनंत सुख थायने दुःख मटे.
स्वरूप समज्या वगर दुःख मटे नहि ने सुख थाय नहि.
भाई, अनंतकाळ स्वरूप समज्या विना चाल्यो गयो. हवे तो चैतन्यनी प्रीति
करीने तेनी समजण कर. आ एवी वात नथी के तने न समजाय. पण पहेलेथी ‘आ
मने नहि समजाय’ एम मानीने समजवानी जिज्ञासा ज छोडी द्ये तो क्यांथी समजाय?