Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
तो मांगण छे. मारुं सुख मारामां छे, मारा अनंतगुणनुं स्व–राज मारामां छे, तेमां
परवस्तुना अंशनी पण जरूर नथी–एम निजगुणना आनंदने स्वाधीनपणे
अनुभवनारा ज्ञानी धर्मात्मा ते मोटा चक्रवर्ती छे.
भाई, आ तो अरिहंतोनो ने तीर्थंकरोनो मार्ग छे. वीतरागनो मार्ग ए तो
वीरनो मार्ग छे. एमां कायरनुं काम नथी; कायर एटले शुभराग विना ने देहनी क्रिया
विना मारे न चाले एवी पराधीनबुद्धिवाळा जीवो वीतरागना मार्गमां चाली शकता
नथी–‘हरिनो मारग छे शूरानो, प्रभुनो मारग छे शूरानो, कायरनुं नहि काम जो..’
मारा चैतन्यने परनी ओशियाळ नथी, रागनी ओशियाळ नथी–एवी स्वाधीनद्रष्टिरूप
शूरवीरता वडे मोक्षमार्ग सधाय छे.
जेम श्रीफळमां चार वस्तु छे– (१) उपरना स्थूळ छोलां; (र) काचली; (३)
टोपरा उपरनी राती छाल, अने (४) अंदर सफेद मीठो गोळो. तेम ज्ञान–आनंदथी
भरेल श्रीफळ जेवो आ भगवान आत्मा, बहारना छोता जेवा देहादि संयोगोथी जुदो
छे; आठकर्मरूपी काचलाथी पण जुदो छे; ने अंदर रागादि परभावरूपी जे छाल तेनाथी
पण जुदो शुद्ध ज्ञान ने आनंदरसथी भरेलो असंख्यप्रदेशी चैतन्यगोळो ते आत्मा छे.
आवा आत्मानी ओळखाण करीने ज्यां सम्यग्ज्ञानरूपे जीव परिणम्यो त्यां ते
ज्ञाननी साथे क्रोधादि वर्तता नथी; क्रोधादि तो ज्ञानथी भिन्नरूपे ज वर्ते छे. ज्ञान थाय ने
तेमां रागनुं कर्तृत्व पण रहे एम बने नहि, केमके बंने वस्तु जुदी छे. जड ने चेतन कदी
एक थता नथी, तेम ज्ञानभाव अने रागभाव पण कदी एक थता नथी, बंनेनां लक्षण
जुदा छे. आम बंनेना भिन्न लक्षणवडे भिन्नता जाणतां जीव ज्ञानमयभावमां ज
तन्मयपणे परिणमे छे ने विकारमां तन्मयपणे परिणमतो नथी. ते–ते काळे वर्तता
रागना ज्ञानरूपे परिणमे छे, ते ज्ञाननुं कर्तृत्व ज्ञानीने छे, पण रागनुं कर्तृत्व ज्ञानीने
नथी. जेम गोळनुं परिणमन गोळरूप होय, काळीजीरीरूप न होय, तेम ज्ञाननुं
परिणमन ज्ञानरूप होय, ज्ञाननुं परिणमन रागरूप न होय. ज्ञान तो आत्मानो
स्वभाव छे ने राग ते तो परभाव छे. तेमने कर्ताकर्मपणुं नथी. एम ओळखीने रागनो
अकर्ता थई ज्ञानभावपणे ज परिणमता ज्ञानीने बंधन थतुं नथी. आ रीते
ज्ञानभाववडे बंधनो निरोध थाय छे, एटले के भेदज्ञान ते मोक्षमार्ग छे.
(आ प्रवचनोना बीजा भाग माटे जुओ, पानुं र९)