करावे एवुं नथी. तेमज आत्मा कारण थईने रागने पोतानुं कार्य बनावे एम नथी.
रागादिक साथे आत्माने कारण–कार्यपणुं नथी. रागने तो दुःख साथे कारण–कार्यपणुं छे.
भगवान आत्मा स्वयं सुखरूप छे, तेने सुख माटे बीजा कोई साथे कारण–कार्यपणुं
नथी; तेमज दुःखनुं कार्य–कारणपणुं पण तेनामां नथी. आत्मानी प्राप्ति दुःख द्वारा (राग
द्वारा) थती नथी. निराकुळ ज्ञान द्वारा आत्मा अनुभवमां आवे छे.
नाकमां दुर्गंधनी गोळी भरी राखे तेने फूलनी सुगंध कयांथी आवे? ते दुर्गंध काढी नांखे
तो सुगंधनी खबर पडे. तेम चैतन्यना परम आनंदनी आ मीठी मधुरी वात, पण
परभावनी रुचिरूपी दुर्गंध राखी छे ते जीवने स्वभावना आनंदनी सुगंध अनुभवमां
आवती नथी. भाई! राग ने ज्ञान बंनेनी जात ज जुदी छे एम समजीने रागनी रुचि
छोड ने ज्ञानानंदस्वभावनी रुचि कर, तो तारा स्वभावना अपूर्व सुखनो अनुभव तने
थशे. पोताना ज्ञाननी रुचि सिवाय बीजा कोई कारणथी सुखनी प्राप्ति थती नथी एटले
के धर्म थतो नथी. आवा शुद्ध ज्ञाननी रुचि ने ओळखाण वगर शुभाशुभ क्रियाकांड
बधा व्यर्थ छे. शुद्धज्ञाननी ओळखाण वगर देव–गुुरु–धर्मनी शुद्धश्रद्धा पण थती नथी.
देव–गुरुए शुं कह्युं ते जाण्या वगर देव–गुरुनी खरी श्रद्धा क्यांथी थशे? देव–गुुरुए
रागने बंधनुं कारण कह्युं छे तेने बदले रागने धर्मनुं कारण मानीने सेवे–ते जीवे देव–
गुरुना उपदेशने मान्यो नथी. बापु! अत्यारे आ शुद्धआत्मानी श्रद्धा करवाना टाणां
आव्या छे. ‘पछी करीश’ एम वायदा न करीश. जेनी रुचि होय तेमां वायदो न होय.
आत्मानी रुचि होय तो आत्मानी ओळखाणमां वायदा न होय. पैसानी रुचिवाळो एम
नथी कहेतो के हमणां पैसा नथी जोता, पछी धीमेधीमे कमाशुं! त्यां तो एकसाथे लाखो–
करोडो आवे तो लई लेवा मांगे छे. तो जेने आत्मानी खरेखरी रुचि लागे तेना भावमां
एम न आवे के हमणां आत्मा नथी समजवो, पछी धीमेधीमे समजशुं.–पण तेना
भावमां तो एम होय के अत्यारे ज आत्मा समजीने तेमां एकाग्रता करुं. ज्यां रुचि छे
त्यां काळनी मुदत गोठती नथी. चैतन्य विना जेने क्षण पण चेन न पडे, एवी जेने
लगनी लागी छे तेने माटे आ वात छे. ने आ वात समज्ये ज दुःखनी भठ्ठीमांथी
उगारो थाय तेम छे. आ सिवाय अशुभ के शुभ ए तो बधी आकुळतानी भठ्ठी छे,
तेमां क्यांय शांति नथी.