चेतनथी रहित छे, ते स्वने के परने नहि जाणता होवाथी तेमने जडस्वभाव कह्या छे;
चेतनस्वभावथी तेनी भिन्नता छे. राग पोते पोताने नथी जाणतो पण रागथी भिन्न
एवुं ज्ञान ज रागने जाणे छे. आवी ज्ञान अने रागनी भिन्नता लक्षमां पण न ल्ये ते
अंतरमां भेदज्ञान करीने अनुभव तो क्यांथी करे? ने भिन्न ज्ञानना अनुभव वगर
तेने धर्म क्यांथी थाय? ज्ञाननुं रागथी भिन्न परिणमन थाय ते ज धर्म अने मोक्षनुं
कारण छे. ज्ञान अने रागनी जे क्षणे भिन्नता जाणे छे ते ज क्षणे जीव रागथी भिन्न
ज्ञानभावे परिणमे छे. कोई कहे के भेदज्ञान थयुं पण आनंदनो अनुभव न थयो.–तो
एम बने ज नहीं. जो रागथी भिन्न थईने ज्ञान न परिणमे ने राग साथे एकमेकपणे ज
परिणम्या करे तो ते जीवने खरूं भेदज्ञान थयुं नथी, ते भेदज्ञाननी मात्र वात करे छे.
जो खरूं भेदज्ञान थाय तो ज्ञानी रागमां केम अटके? भेदज्ञाननुं काम तो ए छे के
ज्ञानने अने रागने जुदापणे अनुभववा; आत्माने ज्ञान साथे एकमेक अनुभववो ने
रागथी भिन्न अनुभववो. आवा अनुभवरूप भेदज्ञान थतां आस्रवो छूटी जाय छे.
पहेलां अज्ञानथी आत्मा रागादिमां तन्मय प्रवर्ततो, ते हवे भेदज्ञान थतां ज ज्ञानपणे
ज परिणमतो थको रागादि भावोथी निवर्ते छे; एटले तेने बंधन थतुं नथी. आ रीते
भेदज्ञान ते बंधनथी छूटवानो ने मोक्ष पामवानो उपाय छे.
मारा देव–गुरुए शुं कर्युं? हुं पण ए ज करुं के जे मारा देव–गुुरुए कर्युं.
वीतरागभाव वडे पोताना आत्माने लाभ थाय ए ज करवानुं छे.
मारा हित माटे एवो बहादुर बनुं के जगतनी कोई परिस्थिति