Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
अरे, रागमां जेने मजा लागे ते रागथी जुदो पडीने आत्माने क्यांथी अनुभवे?
भगवान तो कहे छे के आत्मा ज स्व–परनो प्रकाशक चेतन छे, ने रागादि आस्रवो तो
चेतनथी रहित छे, ते स्वने के परने नहि जाणता होवाथी तेमने जडस्वभाव कह्या छे;
चेतनस्वभावथी तेनी भिन्नता छे. राग पोते पोताने नथी जाणतो पण रागथी भिन्न
एवुं ज्ञान ज रागने जाणे छे. आवी ज्ञान अने रागनी भिन्नता लक्षमां पण न ल्ये ते
अंतरमां भेदज्ञान करीने अनुभव तो क्यांथी करे? ने भिन्न ज्ञानना अनुभव वगर
तेने धर्म क्यांथी थाय? ज्ञाननुं रागथी भिन्न परिणमन थाय ते ज धर्म अने मोक्षनुं
कारण छे. ज्ञान अने रागनी जे क्षणे भिन्नता जाणे छे ते ज क्षणे जीव रागथी भिन्न
ज्ञानभावे परिणमे छे. कोई कहे के भेदज्ञान थयुं पण आनंदनो अनुभव न थयो.–तो
एम बने ज नहीं. जो रागथी भिन्न थईने ज्ञान न परिणमे ने राग साथे एकमेकपणे ज
परिणम्या करे तो ते जीवने खरूं भेदज्ञान थयुं नथी, ते भेदज्ञाननी मात्र वात करे छे.
जो खरूं भेदज्ञान थाय तो ज्ञानी रागमां केम अटके? भेदज्ञाननुं काम तो ए छे के
ज्ञानने अने रागने जुदापणे अनुभववा; आत्माने ज्ञान साथे एकमेक अनुभववो ने
रागथी भिन्न अनुभववो. आवा अनुभवरूप भेदज्ञान थतां आस्रवो छूटी जाय छे.
पहेलां अज्ञानथी आत्मा रागादिमां तन्मय प्रवर्ततो, ते हवे भेदज्ञान थतां ज ज्ञानपणे
ज परिणमतो थको रागादि भावोथी निवर्ते छे; एटले तेने बंधन थतुं नथी. आ रीते
भेदज्ञान ते बंधनथी छूटवानो ने मोक्ष पामवानो उपाय छे.
जीवने पोताने शिखामण
जीवनमां गमे तेवी परिस्थिति आवे त्यारे हे जीव! आपणा
वीतरागी देव–गुरु–संतोने खूब भावथी याद करीने एम विचारजे के
मारा देव–गुरुए शुं कर्युं? हुं पण ए ज करुं के जे मारा देव–गुुरुए कर्युं.
वीतरागभाव वडे पोताना आत्माने लाभ थाय ए ज करवानुं छे.
जेनाथी लाभ थतो होय तेमां पाछीपानी करुं नहि, वीर थईने
ते मार्गे जाउं.
जेनाथी लाभ न थाय ते तरफ जाउं नहि.
मारा हित माटे एवो बहादुर बनुं के जगतनी कोई परिस्थिति
मने डगावी न शके, ने हुं मारा देव–गुरु जेवो बनी जउं.