Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४९४ : आत्मधर्म : ७ :
शास्त्रना श्रवणादिथी अज्ञानी भले शुद्धआत्मानो विचार करे, पण शुद्ध
रागनो एक नानो अंश पण मारो छे के मने मोक्षसाधनमां मददगार छे एवी
अज्ञानी जीव अज्ञानथी भले एम माने के हुं परने जीवाडी दउं के मारुं, अथवा
सुख–दुःख आपुं; पण तेनी मान्यतानी हद केटली? के पोतामां तेवुं अज्ञान करे तेटली ज
तेनी मर्यादा छे, परमां तो कांई ते करी शकतो नथी. जीवाडवानी शुभ ईच्छा होवा छतां
सामो जीव मरी पण जाय छे, सुखी करवानी शुभईच्छा होवा छतां सामो जीव दुःखी
पण थाय छे; ए ज प्रमाणे सामाने मारवानी के