Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
धर्मीने आत्माना आनंदनो अनुभव छे. धर्मी तेने ज कहेवाय के जे आनंदनी
प्राप्तिना अने दुःखना नाशना पंथे चडेलो छे; आत्माना आनंदनो स्वाद चाख्यो त्यारे
जीव धर्मी थयो. जे एकला रागादि अशुद्धभावना अनुभवमां पडेलो छे ते जीव धर्मी
नथी. धर्म तो अपूर्व चीज छे; धर्म तो आनंदमय छे. दुःखथी छूटकारानो उपाय जे धर्म
ते दुःखरूप केम होय? धर्म तो पूर्ण आनंदनी प्राप्तिनुं साधन छे ने ते पोते आनंदना
अनुभवरूप छे. –आवो अनुभव ते जैनधर्म छे आवो अनुभव करे ते जैन छे.
जे कोई सम्यग्द्रष्टि जीव शुद्धस्वरूपने अनुभवे छे ते सम्यग्द्रष्टि जीव कर्मनी
उदयसामग्रीमां अभिलाषा करतो नथी; अने जे कोई मिथ्याद्रष्टि जीव कर्मनी विचित्र
सामग्रीने पोतारूप जाणीने अभिलाषा करे छे ते मिथ्याद्रष्टि जीव शुद्धस्वरूप जीवने
जाणतो नथी.–
करे करम सोई करतारा, जो जाने सो जाननहारा ।
जो कर्ता नहि जाने सोई, जाने सो करता नहि होई ।।२३।।
मिथ्याद्रष्टि जीवने शुद्ध आत्मस्वरूपनुं जाणपणुं होतुं नथी, एटले ते रागादिना
कर्तापणामां अटकेलो छे. धर्मी जीव पोताने शुद्धस्वरूपे अनुभवतो थको रागादिनो
जाणनार ज रहे छे, कर्ता थतो नथी. माटे ज्ञानीने बंधन नथी; अज्ञानी ज पोताने
अशुद्धपणे अनुभवतो थको बंधाय छे. रागना एक अंशने पण जे पोताना स्वरूपपणे
अनुभवे छे ते राग वगरना शुद्धस्वरूपने जराय जाणतो नथी; अने जे पोताना शुद्ध–
ज्ञानस्वरूपने रागथी भिन्नपणे अनुभवे छे ते ज्ञाता रागना एक अंशने पण पोतापणे
करतो नथी. राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान न करवुं ते ज बंधनुं कारण छे. राग अने
ज्ञाननी भिन्नताना अनुभव वडे अशुद्धता अटके छे ने कर्मनो संवर थाय छे. आ रीते
ज्ञाननो अनुभव ज मोक्षनुं कारण छे. उपयोग साथे रागनी एकतारूप चीकणा मिथ्यात्व
परिणाम ते ज बंधनुं कारण छे.
विदेहक्षेत्रमां सीमंधर भगवान तीर्थंकरपणे बिराजे छे; लगभग बे हजार वर्ष
पहेलां कुंदकुंदाचार्यदेव अहींथी विदेहमां पधार्या हता ने दिव्यध्वनिनुं सीधुं श्रवण कर्युं हतुं;
तेमणे आ समयसारादि शास्त्रो रच्या छे; आत्माना अनुभवना